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व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]

कभी-कभी सिर घूमने लगता है अपना शरीर अपने आपे में नहीं रहता चक्कर  खाकर गिरने की नौबत आ जाती है । हमें तब ब्रह्मांड नजर...

दुर्गाप्रसाद पारकर की कविता संग्रह ‘ सिधवा झन समझव ‘ : समीक्षा – डॉ. सत्यभामा आडिल

दुर्गाप्रसाद पारकर का कविता संग्रह- "सिधवा झन समझव"- छत्तीसगढ़ी में छंदमुक्त कविताओं का सुंदर संकलन है!हिंदी बेल्ट में--जनपदीय भाषा में पद रचना तुकांत,गेय या छंद...

🌸 14 नवम्बर बाल दिवस पर विशेष : प्रभा के बालदिवस : प्रिया देवांगन ‘ प्रियू ‘

▪️ बाल कहानी प्रभा अउ शालू  दूनोंझन सहेली रिहिसे। सँघरा खेलय-कूदय। पर दूनोंझन स्कूल नइ जावत रहैं। सबले बड़का समस्या की वो मन देवार जाति...

💞 कहानी : अंशुमन रॉय

💞 मौत •अंशुमन रॉय [ •बठिंडा, पंजाब ] आज बहुत दिन के बाद वह कमरा खुला. सामने थी एक टूटी सी मेज, साथ में एक...

■लघुकथा : ए सी श्रीवास्तव.

♀ कही अनकही उन्हें अपना वजूद ड्राइंग रूम के कोने में रखी पुरानी कुर्सी की तरह लगता है जिसकी घर में एक जगह तो निश्चित...

■लघुकथा : तारक नाथ चौधुरी.

♀ जुगत उसको चिढ़ थी तो केवल इस जुमले से-"जो मजा़ इंतजा़र में है वो विसाल- ए-यार में नहीं।वक़्त की पाबंद शमशाद को किसी की...
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