■75 भारत महोत्सव पर विशेष : ■महेन्द्र कुमार मधेशिया.
●सरहद.
-महेन्द्र कुमार मधेशिया.
[ गोरखपुर-उत्तरप्रदेश ]
हंसकर शूल फूल बन जाए
पाषाण रुके ना धूल बन जाए
अरमानों की बात बस्ती में देखो
तो इनका विषय मूल बन जाए
वतन की सुरक्षा में शत्रु की दाल ना गलने देते हैं
भारत मां की जाये जब सरहद पर पहरा देते हैं ।
निर्भय मौत से नहीं डरते
डरते ना अभिमानी से
ललकार से कांपते शत्रु
पूछो उनकी कहानी से
अंधियारा आये उससे पहले रोशनी जला लेते हैं
भारत मां की जाये जब सरहद पर पहरा देते हैं ।
कठिन है डगर मगर वीर मुस्काते चलें
असंभव को संभव वीर बनाते चलें
है उनका देश, देश के लिए वो हैं
बढ़ चलो चलते रहो वीर जवान चलाते चलें
दिखावे की देश भक्ति से परे होते हैं
भारत मां की जाये जब सरहद पर पहरा देते हैं ।
दो गज जमीन मिले ना मिले हमको
जीवन की प्यास बुझनी चाहिए
जिस पथ से शहीद का शव जाए
उस पथ पर आंसू गिरनी चाहिए
हिफाज़त में हमारे स्वयं को लहू से भेते हैं
भारत मां की जाये जब सरहद पर पहरा देते हैं ।
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