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- ■त्वरित टिप्पणी : अफगानिस्तान. ■मिथिलेश राय [ शहडोल-मध्यप्रदेश ]
■त्वरित टिप्पणी : अफगानिस्तान. ■मिथिलेश राय [ शहडोल-मध्यप्रदेश ]
आज एक बार फिर अफगानिस्तान इस्लामिक चरमपंथी के कब्ज़े में आ चुका है, अमेरिकी सैनिक लौट चुके है , राष्ट्रपति अफ़सर गनी भाग चुके है, और सेना बिना लड़े ही हथियार डाल चुकी है। एक बार फिर सत्ता की बागडोर अफगनिस्तान इस्लामिक चरमपंथियों के हाथ मे है।
अफगानिस्तान का उदय-
हालांकि शुरुआत से ही अफगानिस्तान मध्य एशिया में व्यापारिक देशो के लिए सदा से कोरिडोर साबित हुआ जिसके चलते , एक समय इस पर ग्रेट ब्रिटेन का प्रभाव रहा, फिर रूस का रहा, और अब पिछले कई सालों से अमेरिकी सेना का, ग्रेट ब्रिटेन, व रूस के प्रभाव में सत्ता उदारवादी नेताओं का बोलबाला रहा, और अफगानिस्तान की जनता को खुले आसमान में उड़ने की आजादी रही ।
सोवियत संघ का प्रभाव-
एक समय सोवियत संघ का प्रभाव, जब एशिया के तमाम देशों में फैला था उस समय अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट विचारों से प्रभावित पढ़े लिखे, टाई कोर्ट ,खुले विचार वाले अफ़ग़ानों ने अफगानिस्तान की सत्ता की बागडोर अपने हाथ मे रखी और दशकों तक अपने देश से धर्मान्धों से बचाये रखा । किन्तु यह सत्ता दरअसल पुतला सरकार थी, अफगनिस्तान में तख्ता पलट नीति जिस तरह चली , जहीर शाह, के बाद दाऊद खान, फिर तराकी, अमीन, अफगानिस्तान में बार बार होनेवाले तख़्ता पलट का फायदा उठाते हुए , रूस आया और कम्युनिस्ट विचारों के समर्थक उदारवादी बरबक कमाल को सत्ता की कमान सौप दी इस तरह अफगानिस्तान में रूस के नियंत्रण में एक के बाद दूसरी पुतला सरकारें आती चली गई।लेकिन इन सरकारों का समय नए अफगनिस्तान था जिसने महिलाओं की शिक्षा , काम के अवसर , सुरक्षा, बिजली पानी सड़क ,उद्योग पर भरपूर काम किया, 1972 के दशक में काबुल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियां स्कर्ट टॉप पहनकर जाने लगी थी, तब अफगानिस्तान भी हंसता खेलता, मौज मस्ती से भरा देश था। इस्लामिक बहुल देश मे इस्लाम जैसी कोई चीज ना होना , चरमपंथियों कभी नही जमी और धीरे धीरे वे संगठित होते गए और रूसियों को हटाने के लिए कड़ा मोर्चा लिया ।
संयुक्त राज्य की सत्ता के लिए प्रतियोगिता——
सोवियत संघ के पश्चिम एशिया में बढ़ते प्रभाव से संयुक्त राज्य की सबसे बडी चिंता का कारण था वह किसी भी तरह सोवियत संघ के इस प्रभाव को वियतनाम की हार के बाद रोकना चाहता था, जिसके लिए संयुक्त राज्य ने आइजनहावर सिद्धांत पर अमल करते हुए सोवियत संघ को उखाड़ने के लिए इन देशों में हथियार और पूंजी मुहैया कराना जोर शोर से शुरू किया । जिसका परिणाम आज मध्य एशिया भुगत रहा है।
सोवियत संघ का विघटन———
सोवियत संघ में मची अंदुरुनी सत्ता हथियाने संघर्ष ने सोवियत संघ को कमजोर करना शुरू कर दिया था, गोर्बाचेव को उन्ही के समर्थकों ने अपने ही देश मे बंदी बना लिया, बाद में छूट पर दल की दलों में टूट चुका था, अफ़ग़ानों के विरोध के कारण रूस ने 1989 में अपनी सेना को वापस कर लिया । इसके बाद
1992 में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद कम्युनिस्ट समर्थित अंतिम उदारवादी अफ़गानी सरकार गिर गई।
दरअसल लगातार कई वर्षों से अलग मुजाहिद्दीन संगठन अफगानिस्तान के कम्युनिस्ट विचारों से प्रभावित उदारवादी नजीबदुल्लाह को सत्ता से ना केवल हटना चाहते थे बल्कि पूरे परिवार के साथ मार डालना चाहते थे, वे नजीबददुल्लाह को केवल कम्युनिस्ट विचारों वाला ही नही बल्कि अल्लाह को ना मानने वाला एक ऐसा व्यक्ति मानते थे जो इस्लामिक बाहुल्य देश पर सत्तासीन था, सरकार गिरने के बाद, नजीबददुल्लाह को मिज़ाहिद्दीनो ने मारकर लैम्प पोस्ट पर टांग दिया था।
नई तालिबान सरकार का गठन——
अब नई सरकार मुजाहिद्दीन समर्थकों की थी। जाहिर है, आने वाली सरकार अब धर्मनिरपेक्षता को मानने वाली नही हो सकती थी। चरमपंथियों की इस तरह सत्ता हथियाने के बाद सबसे ज्यादा जुल्म लड़कियों महिलाओं और बच्चों को उठाना पड़ा, इसके आलावा विधर्मियों का दमन चालू हुआ बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ना शिक्षा, नीति, न्याय , का इस्लामिक करण चालू हो गया। और इस तरह एक हंसता खेलता मुल्क गरीबी जहालत , जुल्म और यातना, और खून खराबे के देश मे बदल गया । नतीजा 9/11 को अमेरिका पर मुल्ला उमर, और लादेन के हमला हुआ । और इस तरह अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का आगमन और तालिबान का देश निकाला हुआ ।
आज का अफगानिस्तान—–
आज एक बार फिर अमेरिकी सेना के लौटते ही तालिबान लौट आया है। पिछले दिनों तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में महिलाओं पर खुले विचार समर्थको , कलाकरों , फ़िल्म निर्माताओं पर अत्याचार, यातना और जुल्म का सिलसिला बढ़ने लगा है। हालांकि नए तालिबानी कह रहे कि वे लड़कियों/महिलाओं को शिक्षा रोजगार देंगे। यहाँ यह बात भी महत्व की है कि अफगानिस्तान में 42%पख्तून है, जो मूल निवासी भी है जबकि तालिबानी ( सुन्नी मुसलमान)कम है, इस नई सरकार में सत्ता संतुलन को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे है। अब देखना यह और भी दिलचस्प होगा कि बुलेट से आई सत्ता बैलेट की सत्ता बनते ही आने वाले दिनों कौन से नए सितम ढायेगी,
आज के हालात——-
आज अफगानिस्तान में मचे घमासान में दुनिया के तमाम देशों ने यहां तक इस्लाम समर्थित इरान तेहरान कजाकिस्तान, और इतना बड़ा सुन्नी मुल्क सऊदी अरब ने चुप्पी। साध रखी है। पाकिस्तान जो अप्रत्यक्ष रूप से अफगानिस्तान पर राज करना चाहता है इसलिए वह तालिबान( सुन्नी समर्थित संगठन) का नुमाइन्दा बना हुआ है, अमेरिका जो पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर अपना खेल जारी रखे हुए है,हालांकि अफ़गानी आम जनता को तालिबान के हाथों जिस तरह सौप दिया गया है। उससे लगता है, तालिबानी सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नही है। आज के समय मे धर्म के सहारे सत्ता तो हासिल करना आसान है पर उसे कायम रख पाना असंभव है। कल जब अफ़गानी जनता बिजली पानी, काम गरीबी स्वास्थ्य शिक्षा मांग करेगी तब वहीँ जनता उनसे लड़ेगी । जनता को नए अफगानिस्तान के लिए एक दिन आगे आना ही होगा । हाँ इसमे देर सबेर हो सकती है।
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