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■ कविता : ■ शशि मोहन सिंह.
♀ कृष्णा ! तुम आओ न फिर से
♀ शशि मोहन सिंह
[ आईपीएस, छत्तीसगढ़ पुलिस ]
कृष्णा ! तुम आओ न फिर से
तमाम द्रौपदियाँ
खड़ी हैं चौराहों पर
और अनगिनत
हैवानी नंगी आँखें
आतुर करने को
निर्वस्त्र इनको
आओ कृष्णा !
ढ़ँक दो इनको
अपनी विराटता के
वस्त्र से
कृष्णा ! तुम आओ न फिर से
पापमयी पूतना
बसने को आतुर
भ्रष्टाचार का कालिया नाग
डसने को आतुर
दु:शासन की निर्लज्जता
कंस की क्रूरता
धृतराष्ट्र का अंधत्व
भीष्म का मौन
दुर्योधन की कलुषता
इन सब से तारेगा कौन ?
इन असुरी वृत्तियों का
संहार करो
चक्र सुदर्शन शस्त्र से
कृष्णा ! तुम आओ न फिर से
यमुना प्यासी
स्वयं तुम्हारे प्रेम को
बृजवासी अनुराग को
समझो गोपियों का दर्द
और राधा के त्याग को
जो तुमने मन के
कागज़ पर
मुरली की धुन से लिखी थीं
प्रेम की पंक्तियाँ
पढ़ा दो फिर से
हम सब फिर से
अभिभूत होंगे
उस प्रेममयी पत्र से
हाँ कृष्णा ! ढ़क दो
इस जग को
अपनी विराटता के
वस्त्र से
कृष्णा ! तुम आओ न फिर से
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