■हिंदी दिवस आज : ■निज भाषा उन्नति है,सब उन्नति को मूल,बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल-भारतेंदू हरिश्चंद्र.
♀ 14 सितंबर 1949
♀ तारकनाथ चौधुरी.
[ चरोदा-भिलाई, छत्तीसगढ़]
आज हिंदी दिवस है।अन्य विशिष्ट दिवसों से पृथक भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए गौरव का दिवस है,ये दिवस।अतःसमस्त भारतवासियों को सहस्त्र शुभकामनायें।14सितंबर1949 को जब हमारी हिंदी को अधिकारिक रुप से स्वीकृति मिली तो ऐसा लगा कि एक औपनिवेशिक भाषा की श्रृँखल से मुक्ति मिली हो।अपनी भाषा को माता की तरह हृदय में प्रतिष्ठित करने वाले भारतवासी,उस दिन से आज पर्यन्त हिंदी भाषा को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर,सर्वव्यापी बनाने को दृढ़ संकल्पित हैं।इस अभियान पथ में,सबसे बडी़ बाधा बनकर जो भाषा हमारी हिंदी से प्रतिद्वन्द्विता करती रही है,वो है अंग्रेजी़।अप्रत्यक्ष रूप से हमारी गणतांत्रिक व्यवस्था में राज्यों को तुष्ट करने की नीतियाँ भी इसकी विकास यात्रा में रोडे़ डालती रही हैं।मेरे इस वक्तव्य के समर्थन में डाॅ.नामवर सिंह के मनतव्य को रेखाँकित करना चाहूँगा।वे कहते हैं-“स्ववतंत्र भारत में हिंदी की स्थितिराष्ट्रपतिजैसी है और अँग्रेजी की हैसियत प्रधानमंत्री की।”तात्पर्यतः जब किसी भाषा की दशा त्रिशंकु जैसी हो तो उसका भविष्य अनिश्चयता की जाल में फँसता दिखता है।इस अनिश्चय भाव को दूर करने के लिए जो पहला ठोस कार्य करने की आवश्यकता है,वो है-हिंदी को राजभाषा की परिधि से निकालकर राष्ट्रभाषा के रूप प्रतिष्ठित करने पर एकमतेन स्वीकृति। व्यवसायिक हित साधने वाले और वैश्वीकरण की कसौटी पर हिंदी को खोटी समझने वालों से हमारी भाषा के संघर्ष को तभी समाप्त किया जा सकेगा,जब हम अपने व्यवहारिक जीवन में अधिकाधिक हिंदी का प्रयोग करेंगे और अँग्रेजी न जानने की हीन भावना से उबरकर विश्व मंच पर हिंदी का मानवर्द्धन करेंगे।उल्लेखनीय,प्रशंसनीय एवं गर्व की बात है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री अब हिंदी भाषा में विश्व को संबोधित करते हैं जो कि एक शुभ-संकेत है।
*हिंदी हमारी वेदना,हिंदी हमारा गान है,
हिंदी हमारी चेतना-वाणी का शुभ वरदान है!*
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