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- ■ विजयादशमी दशहरा पर विशेष : -डॉ. नीलकंठ देवांगन.
■ विजयादशमी दशहरा पर विशेष : -डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ असुरत्व पर देवत्व का विजय पर्व-विजयादशमी.
♀ डॉ. नीलकंठ देवांगन.
[ शिवधाम कोडिया,जिला-दुर्ग,छ. ग. ]
विजयादशमी दशहरा श्री राम की विजय यात्रा की याद में मनाया जाने वाला विजय पर्व है | मानव जाति को व्यापक प्रेरणा और उत्साह देने वाला उमंग पर्व, जन जन को व्यावहारिक जीवन मूल्य सिखाने वाला आदर्श पर्व, अपने भीतर के आसुरी वृत्तियों को भष्म करने वाला, श्री राम के प्रति कृतज्ञता अर्पित करने का समर्पण पर्व है |
बुराई पर अच्छाई की जीत का शक्ति पर्व, असत्य पर सत्य की जीत का सत्य पर्व और अधर्म पर धर्म की जीत का धर्म पर्व है दशहरा |असुरत्व पर देवत्व के विजय का प्रतीक एक महान पर्व है दशहरा | आज के ही दिन प्रभु श्रीराम ने राक्षस राज रावण का वध किया था | तब से प्रतिकात्मक रूप से प्रति वर्ष रावण का दहन किया जाता है |
पौराणिक कथा- इसके साथ अनेक प्रतीकात्मक पौराणिक कथायें जुड़ी हुई हैं | कहते हैं कि जब असुरों के अत्याचार और अनाचार से धरा प्रकंपित हो उठी थी, देवत्व का लोप हो गया था और मानवता कराह रही थी तब नौ दिनों तक शक्ति रुपिणी दुर्गा की पूजा कर प्रभु श्रीराम ने दसवें दिन रावण का वध किया और देवत्व की पुनर्स्थापना की | रावण पर विजय प्राप्त कर देव भूमि भारत पर सतोप्रधान रामराज्य की स्थापना की |
आध्यात्मिक पक्ष- आध्यात्मिक रूप से देखा जाय तो रावण अभी मरा नहीं है | यदि मर जाता तो प्रति वर्ष उसका पुतला जलाने की जरूरत क्यों होती? क्योंकि मरे हुए का पुतला कभी नहीं जलाया जाता | देखा जाय तो बुत (पुतला) जीवित दुश्मन का ही जलाया जाता है | रावण का पुतला जलाने से साफ है कि रावण अभी जिंदा है ,मरा नहीं है| रावण का अर्थ है- रुलाने वाला | रावण का दस सिर दस विकारों का प्रतीक है | पांच विकार- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार (पुरुष के) और पांच विकार- ईर्ष्या, निंदा, घृणा, आलस्य, भय (स्त्री के) |
क्यों न हम इसे समझें और समझ कर विकारों रूपी रावण को जलाकर सच्ची विजयादशमी मनाएं | सही अर्थों में राम परमात्मा को अपने मन में बसाकर दस विकारों को ज्ञान रूपी बाण मारकर योग रूपी अग्नि में जलाकर सच्चा दशहरा मनाएं | दस विकारों को हरा (परास्त कर) मन पर विजय प्राप्त कर विजयोत्सव मनाएं |
रावण बुराइयों का प्रतीक- रावण तो बुराइयों का, दुष्प्रवृत्तियों का प्रतीक है | साल में एक दिन प्रतीक रूप में रावण को मारने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है जबकि समाज में रोम रोम में व्याप्त विसंगतियां रावण की भुजाओं से भी ज्यादा आम जनता की गर्दन दबा रही है | इसे समझना होगा | केवल रावण का वध कर देने से या रावण का पुतला जला देने से हमारे कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती | हमें अपने अंदर के रावण को बुराइयों को, मलीनताओं को जलाना होगा | अपने विकारों को विनष्ट करना होगा |
न्याय और नैतिकता का पर्व- श्री राम का संपूर्ण जीवन हमें आदर्श और मर्यादा की सीख देता है | ईश्वरीय अवतार होकर भी वे जीवन संघर्ष से नहीं बच सके | हर सुख दुख को उन्होंने आत्मसात किया | हमें भी अपने जीवन को ईश्वरीय प्रसाद समझकर कृतज्ञ भाव से जीना चाहिए | न्याय और नैतिकता का पालन करना चाहिए | जीवन की सार्थकता इसी में है | यही श्रेयश्कर है |
रावण पर राम की विजय वेला आज भी पूरे भारतीय समाज में श्रद्धा और आकर्षण के साथ जीवित है | युगों पहले राम ने सत्य और शक्ति के सहारे असत्य और अनाचार के के रावण को ध्वस्त किया था | इतिहास और संस्कृति का यह कालजयी घटना सदियों से हमारी आत्मा का अंग बन चुकी है |
संदेश- दशहरा उत्सव में हमें जीवन जीने की कला सिखाती है | लोक कथा के साथ संदेश निहित है | इस छुपे संदेश को समझना है और वरण करना है | संदेश है कि अन्याय और अनैतिकता का दमन सुनिश्चित है | चाहे दुनिया भर की शक्ति और सिद्धियों से कोई कितना भी संपन्न हो जाये लेकिन सामाजिक गरिमा के विरुद्ध किये गये आचरण से उसका विनाश तय है |
अहंकार का अंत- हर साल इस सांध्य कालीन विजयोत्सव में जन सैलाब उमड़ता है और अहंकारी रावण के पुतले को अपनी आंखों के सामने राख होते हुए देखता है | अच्छा हो कि इतिहास की इस कालजयी घटना के साथ अपने आप को जोड़कर देखें कि कहीं मुझमें तो ऐसी वृत्ति नहीं है | यदि लगे कि है तो तुरंत उसे भष्म करने का दृढ़ संकल्प लें क्योंकि अहंकार का अंत निश्चित है |
कुछ नया करें- हर वर्ष रावण को बुराइयों के प्रतीक रूप में जला तो देते हैं मगर बुराइयां खत्म नहीं होतीं | दसियों रावण सिर उठाकर खड़े हो जाते हैं | एक ओर जहां आसुरी प्रवृतियाँ अपने अस्तित्व को बनाये रखने पूरा जोर लगा रही हैं, वहीं देव सत्तायें भी सतयुगी वातावरण के प्राकट्य हेतु तत्पर दिख रही हैं | आइये इस विजयादशमी के पावन दिवस पर कुछ नया करें | आज तक रावण का पुतला जलाने का खेल खेलते आये हैं | सर्व शक्तिमान परमात्मा के शक्ति सेना में सम्मिलित हो जांय और अपने में विद्यमान मनोविकार रूपी रावण का समूल नाश कर मायावी मनुष्यों को पूर्ण पवित्रता का संदेश सुनाकर रावण की इस माया नगरी पर परमात्मा प्रभु राम का विजय ध्वज फहरायें | तब सबका आत्मा रूपी दीपक पूर्ण प्रज्ज्वलित होगा और सभी सुख शांति संपन्न समृद्ध जीवन जी सकेंगे |
यह सिर्फ जश्न भर बनकर न रह जाय | हम सभी को समाज में पनप रहे रावणीय सोच को खत्म करने वाले तीर दागने होंगे | आज हम अपने अंदर की बुराई को मारें और अहंकार को जलायें |
इस विजय उत्सव में सम्मिलित हो अपने सद्वृत्ति के उन्नत ललाट पर विजय का तिलक लगायें |
●लेखक संपर्क-
●84355 52828
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