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■दीपावली पर विशेष : ■पंखुरी सिन्हा.
♀ बिना पटाखों की दिवाली.
♀ पंखुरी सिन्हा.
[ मुज्जफरपुर,बिहार ]
राशन में मिलते थे पैकेट
फुलझड़ी के, गिनती के
चरखी, अनार!
घर का कोई बड़ा
ज़िद पे हमारी
कर देता था आतिशबाजी
हम लम्बे कर हाथ
दूर पकड़ते थे फुलझड़ी
और चमकीली हो जाती थी
दिवाली! अलबत्ता, हम सुनते थे
ढ़ेरों बातें! कि पटाखों की नहीं
होनी चाहिए दिवाली! न गंध बारूदी
हवा में! कि हमसे एक पीढ़ी पहले तक झिलमिल दियों की होती थी
दिवाली! खुशबु सरसों तेल की
सोंधी सुनहली! कि हमें बचानी
चाहिये केले के थंब में
खंभे सी गड़ी दीपमालाओं में झिलमिलाती दिवाली!
अन्धकार पर विजय का
पर्व दिवाली!
पर नहीं सुनी
हमारी पीढ़ी ने उनकी बात!
भर दिया दीपोत्सव को
पटाखों के शोर से!
हज़ार अग्निकांड के बाद भी
अग्नि का यह उत्सव तीन दिन पहले ही
गूंज उठता है धमाकों में
धरती को हिलाता
जीव जंतुओं को डराता!
सुरक्षित रहें सभी, आतिशबाजी
के पागल दीवाने! खिलन्दड़े शोहदे!
सुरक्षित रहें बेघर, गली के कुत्ते
जीव जंतु, डर गए हैं जो
पहले ही बम के विस्फोट से!
डर कर छिप गए हैं पखेरू
पेड़ों में, घर के कोने कोने में
छिप गए हैं, छोटे बड़े सभी
पालतू कुत्ते, देशी !
बच्चों के मन में डर नहीं
कौतूहल, उत्साह
किन्तु यही तो उत्सव
का नया संस्करण
बल्कि पुराना, पहुँचना
उनतक ज़रूरी!
कि कितने खतरनाक हैं
पटाखे! जरूरी नहीं
ऐन तभी बल्कि
लम्बे समय तक
पर्यावरण को करते प्रदूषित !
ज़रूरी नहीं हादसे
साबित करने को
पटाखों के खतरे!
किन्तु, कठिन नहीं है
कल्पना पटाखे मुक्त
दिवाली की! जगमग
मोमबत्तियों की कतारों
दीपमालाओं और आप सी
स्नेह के आलोक से
जिसमें शामिल हों
पेड़ पौधे, पशु पक्षी
चर अचर, समूचा स्पंदन!
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