■दीपावली पर विशेष : ■महेश राजा
♀ दिवाली की सफाई
दिपावली का त्यौहार नजदीक था।बेटा देश से आया हुआ था।घर में सब खुश थे।
घर के मुखिया साहित्य से जुडे थे।घर में एक कमरा उनकी पुरानी किताबों, पत्र पत्रिकाओं से लदा पडा था।
बेटा सफाई पसंद था।मां से बोला,यह सब क्या भर कर रखा है।चलो साफसफाई करते है।पुरानी पुस्तकों को रद्दी में दे देते है।”
मां ने कहा,तुम्हारे पापा मना करते है।”
वे बाजू के कमरे से यह सब सुं रहे थे।पिछले बतीस वर्ष के साहित्य सफर की यादें जुडी थी,इन किताबों से।क ई छपी अनछपी रचनाएं,पत्र,डायरी और ढेर सारी यादें।हालांकि बहुत सारी किताबों के पन्ने समय के साथ पीले पड चुके थे।पर,इन सबके साथ उनकी भावनाएं जुडी थी।
बेटा इस बार जिद में था।वे थके स्वर में पत्नी से बोले,-“ठीक है,बडे दिनों बाद आया है बेटा जैसा कहता है करो।मैं मन्दिर जा रहा हूं।देर से आऊंगा।तब तक तुम लोग सफाई निपटा दो।”
वे जानते थे इतने दिनों से सम्भाली हुई उनकी धरोहर आज घर से चली जायेगी।कितने दिनों का साथ था।पुरानी यादें लिपटी हुई थी।वे मन ही मन रो रहे थे।थके कदमों से मंदिर की तरफ चल पडे।अब शायद सबकुछ नये सिरे से शुरु करना होगा।क्या कर पायेंगे वे ऐसा….?
♀ रुतबा और स्टेट्स
वैभवजी बहुत बड़े बिजनेस मेन थे।शहर में ही रच बस गये थे।उनका अपना रूतबा था।
इस दीपावली पर उन्होंने हुंडई का नया माडल वेन्यू लिया था।
छोटाभाई गांव में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता।खेत थे।उसकी देख भाल करता था।
इस बार त्यौहार पर वे मिल नहीं पाये थे।उन्होंने भाईदूज पर गांव में भाई को फोन लगाया,सारी बातें बतायी।छोटा सरल ह्रदय था।खुश हुआ।वैभव जी ने गुडिया अम्बु को कहा,-“दिसंबर छुट्टियों में जरूर आना।तुम्हारा गिफ्ट रखा है।और हां,आओगी तो नयी कार में घूमने चलेंगे।”
कुछ देर रूककर छोटे से बोले,”बड़े बड़े लोगों का आनाजाना लगे रहता है।नयी कार रहने से ईम्प्रेशन पडता है।
लोग प्रभावित होते है।शहर में आजकल यही हो रहा है।ठीक है अपना ख्याल रखियो।बहु और बच्चों को लेकर शहर जल्दी आना।रखता हूं।कोई मिलने आया है।”
♀ अपने-अपने त्यौहार
दुखिया जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी।कल दिपावली का त्यौहार था।उसने कल की छुट्टी और कुछ रुपये मालकिन से मांगे थे।मालकिन ने उसकी छुट्टी नामंजूर कर दी थी,यह कह कर कि कल दोपहर कुछ मेहमान भोजन पर आने वाले थे।कमसेकम एट टाईम वह जरूर आये।
उसे मनुवा की बडी याद आ रही थी।वह मिठाई और नये कपडों के लिये जिद कर रहा था।सोच रही थी,कल काम जल्दी निबटा कर मालकिन का मूड देखकर पैसे मांगेगी।उसने मनुवा से वायदा किया था कि इस बार नये कपडे और मिठाई जरूर ला देगीमनुवा की पीली पडती आंखों में चमक देख कर उसे अच्छा लगा था।
सुबह से ही सब लोग नये कपडे पहन कर घूम रहे थे।वह आज काम पर जल्दी चली आयी थी।मालकिन के घर से मिठे पकवानों की सुगंध आ रही थी।
मालकिन का बेटा राजू ने नये कपडे पहन रखे थे।एकदम राजकुमार लग रहा था।उसे गोदी में उठाकर उसका माथा चूमकर वह अपने काम में लग गयी।
दोपहर होने को थी।मेहमानों का आना जाना जारी था।उसके मन में बैचेनी थी।पर,मालकिन की व्यस्तता देख कर चुप रही।कैसे पैसे मांगे।सारा ध्यान मनुवा की तरफ था।झोपड़ी के बाहर सबको नये कपडों में देखकर उसका मन मचल रहा होगा।उसे भूख भी लगी होगी।उसे यूं खडा देखकर मालकिन ने आवाज लगायी,जल्दी जल्दी हाथ चलाओ।
वह रसोई में आ गयी।ढेर सारी मिठाईयां देख कर मन हुआ कि थोडी सी मिठाई आंचल में बांध ले।पर उसने ऐसा नहीं किया।आंखों में पानी भर आया और मनुवा का कुम्हलाता चेहरा भी याद आया।
चार बजने को थे।उसने हिम्मत कर मालकिन से पैसे मांगे।मालकिन ने कहा,पहले पूरे बर्तन साफ कर ले फिर देती हूं।
वह बर्तन साफ करते हुए सोच रही थी,आज फिर घर लौटते देर हो जायेगी और मनुवा रोते रोते सो जायेगा।
♀ मुस्कुराता दीपक
रोशनी का पर्व।हर घर में दीपक रोशन थे।
एक कालोनी के फ्लैट में जगमगाती लाईट जल रही थी।सब कुछ चमक रहा था।
सामने ही वर्कर क्वार्टर में बिरजू अपने माता पिता के साथ रहता था।बिरजू की मां ने रंगोली बनायी थी,और दीपक जलाया था।घर पर भी तुलसी क्यारे व मंदिर में दीपक जल रहा था।रजू
फ्लैट मालिक के पुत्र बंटी पटाखे चला रहा था,और जगमगाते बल्ब की रोशनी पर ईतरा रहा था।वह बिरजू को चिढा भी रहा था।बिरजु खामोश फुलझड़ी हाथ में लिये ,दीपक निहार रहा था।
तभी कोई खराबी आ जाने से बिजली गुल हो गयी।बंगलें में अंधेरा छा गया।बंटी रोने लगा।
उधर बिरजू के छोटे से घर में दीयें रोशन हो रहे थे ।बिरजू मुस्कराता हुआ दीपक की रोशनी में फुलझड़ी जला रहा था।
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