■कविता आसपास. ■प्रतिभा सिंह.
♀ अच्छा लगता है.
♀ प्रतिभा सिंह
【 झारखंड 】
उगते हुए सूरज के साथ डूबते सूरज
को भी अर्घ्य देना अच्छा लगता है
अच्छा लगता है…….
सूप में सजे नये-नये
फल-फूल, कंद-मूल साथ
घी में बने ठेकुआ को देखना
अच्छा लगता है…
छठी मइया के गीत जो
समा जाती है मन में और
बाध्य करती है आस्था के
दीप जलाने के लिए
अच्छा लगता है…
चाची-मामी , भैया-दीदी
मौसी-बुआ का एक साथ
मिलकर पूजा में सहयोग
करते देखना
घर की बच्चियों का सजना
बच्चों की किलकारी
बुजुर्गो की समझदारी
अच्छा लगता है,…..
सफाई करते हुए देखना जिसमें
बच्चे -जवान मिलकर करते हैं श्रमदान
शैवाल से भरे अचेत अवस्था में पड़ी
नदी, ताल-पोखर में आती है जान
अच्छा लगता है……
इस पर्व में कम से कम
एक बार आता है लाल
देश से , विदेश से
शायद इसलिए अम्मा करती है
हर साल
अच्छा लगता है,….
जन-जन में उल्लास-उमंग के साथ
संस्कार-संस्कृति को अग्रसारित
करता लोकपर्व को देखना
अच्छा लगता है यह
छठ महापर्व…!!
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