■देव उठनी एकादशी पर विशेष : ■डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ मोक्ष के देवइया-देव उठनी एकादशी वरत.
♀ डॉ.नीलकंठ देवांगन.
【 शिवधाम कोडिया, जिला-दुर्ग,छत्तीसगढ़ 】
चार महीना ले सुते भगवान विष्णु
जागथे देव उठनी एकादशी के दिन
जग के पालन हार सोये रहिथे योग
निद्रा मं देव सुतनी एकादशी के दिन
असाढ अंजोरी पाख एकादशी ले
कातिक अंजोरी पाख एकादशी तक
चवुमासा मं सोथे श्री हरि विष्णु
मांगलिक कार्य नइ होवय तब तक
जब श्री हरि सो जथे योग निद्रा मं
दूसर देवता मन जागत रहिथें
भगत मन ल भक्ति के फल देवत
मनोकामना ल पूरा करत रहिथें
जप तप पूजा ध्यान साधना
भजन कीर्तन सब होथे चवुमासा मं
शक्ति अर्जित करे के होथे ये समय
अंतस के शक्ति ल जगाथें चवुमासा मं
सावन महीना शिव जी के प्रिय महीना
जल्दी परसन्न हो मनचाहा वर देथे
सावन सोमवारी मं भक्त मन ल
दरसन पूजन ले मालामाल कर देथे
भादों मं सिरि किसन कन्हैया लाल
सबका प्यारा लाडला दुलारा आथे
बाल लीला ले सबला मोहित करथे
गुवाल बाल संग बन मं गाय चराथे
क्वांर पितर पाख मं पितृ मातृ मन
साल मं परिवार संतान बीच आथे
सराद्ध तरपन ले परसन्न संतुष्ट हो
अपन किरपा आशीष बरसाथे
दुर्गा पक्ष मं आदिशक्ति मां भगवती
नव रूप मं नव दिन दरसन देथे
अराधना पूजा जसगान ले खुश हो
अपन शक्ति साधक मन मं भरथे
इही महीना राम रावण ल मारे रिहिस
जीत के खुशी मं लोग दशहरा मनाथें
कातिक अंधियारी पाख अमावस मं
लक्ष्मी जी के पूजन दीपावली मनाथें
महीना भर भिन्सरहा कातिक नहा के निरोगी काया सौभाग्य पुन्न फल पाथें
कातिक अंजोरी एकादशी के विष्णु
जागथे रुके शुभ कार्य शुरू हो जाथे
ये दिन ल देवोत्थान देव उठनी
प्रबोधनी जेठउनी एकादशी कहिथें
जग पालनहार के जागे के खुशी मं
वरत उपास लक्ष्मी विष्णु के पूजा करथें
वृंदा रूप तुलसी विष्णु रूप सालिग्राम
ये दिन तुलसी बिहाव के रूप मं मनाथें
कुसियार के मंडवा छा सजा धजा के
विधि विधान ले दुनों के बिहाव रचाथें
ये वरत के बड़ महत्व बड़ लाभ हे
पाप नाश नीच जोनि से मिलथे मुक्ति
सब संकट दूर धन धान्य ले भरपूर
मोह माया बंधन दुख ले पाथें मुक्ति
ये दिन चांउर नइ खाय जाय
केवल फलाहार करना चाही चांउर खाय ले रेंगइया जोनि मिलथे
नियम ले वरत उपास करना चाही
ये वरत ले मिलथे संतान सुख
समरिद्धि शांति मोक्ष के पराप्ति
निष्ठा अउ नेम से वरत करे ले
सब मनोकामना के होथे पुरति
सुंदरी के रूप धर परीक्षा लिस विष्णु
एकादशी वरत करइया राजा के
नगरवासी मन घलो नेम निष्ठा ले
वरत के पालना करंय धर्मनिष्ठ राजा के
लड़का के गला काटे बर तियार राजा
फेर नीति नियम बिलकुल नइ छोडिस
विष्णु तब परकट हो दरसन दिस
परसन्न हो आशिरवाद वरदान देइस
सुख सौभाग्य संपत्ति पाय खातिर
रखना चाही देवउठनी एकादशी वरत
निरोगी काया शांत शीतल मन खातिर करना चाही निर्जला एकादशी वरत
■कवि संपर्क-
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