■किसान आंदोलन : सरकार की शर्मनाक हार व किसानों की ऐतिहासिक जीत-श्यामलाल साहू,श्रमिक नेता.
■भिलाई
कृषि के कॉरपोरेटीकरण व कृषि भूमि की हड़प-नीति को बढ़ावा देने वाले कृषिकानूनों की वापसी और अगले संसद सत्र में वैधानिक तौर पर उसे रद्द करने की घोषणा से कृषिकानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से संचालित ऐतिहासिक ‘किसान आंदोलन’ की बहुत बड़ी जीत हुई है। यह वास्तव में कॉरपोरेट घरानों के दलाल नव फासीवादी, सामंतशाही संघ-परिवार और मोदी-शाह की करारी हार है।
हो सकता है सरकार ने हालिया चुनाव परिणामों और पंजाब-यूपी सहित पाँच राज्यों के आसन्न विस चुनावों के मद्देनज़र केंचुली बदली हो, लेकिन यह तो तय हो गया है कि सरकार अब तक किसानों से छल कर रही थी। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि “वो तीनों कृषि कानून वापस लेने जा रहे हैं। ये कार्यवाही आने वाले संसद सत्र में की जाएगी।” ये एक साल से सड़क पर सर्दी–गर्मी व बारिश की परवाह किए बिना आंदोलन कर रहे लाखों किसानों की जीत है। ये उन सभी 700 से ज़्यादा शहीद हुए किसानों की जीत है जो आंदोलन में लड़ते हुए शहीद हुए। ये लखीमपुर खीरी में मंत्री के बेटे द्वारा मारे गए किसानों और उनके परिवारों की भी जीत है।
हमें याद रखना चाहिए कि इन सभी किसानों की हत्या की ज़िम्मेदार ये फासीवादी मोदी सरकार है। पिछले एक साल में इसी सरकार और इसकी पालतू मीडिया ने किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी, नक्सली आंदोलनजीवी और न जाने क्या क्या कहा था। सरकार ने इन किसानों को गद्दार और देशद्रोही कहने में भी संकोच नहीं किया। इन्होने ये तक कहा कि ये लोग किसान ही नहीं हैं ! आंदोलन स्थलों पर कीलें लगाई गयीं, पानी की बौछारें की गईं और उन पर बेरहमी से लाठीचार्ज किया गया। उन पर केस भी दर्ज हुए और उन्हें घोर दमन झेलना पड़ा। लेकिन ये किसानों के आंदोलन की ही ताकत है कि उसने इस अहंकारी मोदी सरकार को घुटने पर ला दिया है और उन्हें मौखिक रूप से हार माननी पड़ी है। किसानों ने सर्दी में अपने साथियों को मरते देखा, दुनिया भर की बदनामी झेली, कितने हमले झेले, कितने आँसू बहाये लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। ये स्वतंत्र भारत का ऐतिहासिक और सबसे बड़ा आंदोलन रहा है। इसकी एक बड़ी उपलब्धि ये रही है कि इसने अदानी–अंबानी और कॉरपोरेट पूँजीपतियों की तानाशाही व क्रूरता का पर्दाफाश किया है। मोदी सरकार सिर्फ दूसरी बार अपने निर्णय से पीछे हटी है, ये किसानों और आम जनता की ताक़त नहीं तो और क्या है? दरअसल सरकार यह अच्छी तरह भॉप चुकी है कि किसानों की नाराजगी उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं और जनता के दरबार से बड़ा कोई दरबार नहीं। वास्तविक हीरो जनता ही होती है, इस आंदोलन ने ये साबित कर दिया है। किसान नेताओं का कहना है कि अब वो इस बात का इतज़ार करेंगे कि संसद सत्र में ये कानून वापस लिए जाएँ। साथ ही उनका कहना है कि एमएसपी व मंडी की गारंटी और बिजली बिल 2020 की वापसी के लिए लड़ाई जारी रहेगी। ये भी सही है कि पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों को देखते हुए ये कानून वापस लेने की बात हुई है। निस्संदेह बीजेपी को इन चुनावों में खराब परिणामों या शर्मनाक हार का डर अवश्य होगा इसलिए भी वह पीछे हटी है। अब देखना होगा कि आम जनता इस निर्णय के बाद किस तरह वोट करती है। लेकिन इससे ये तो साबित हुआ कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान में फासीवादी बीजेपी के खिलाफ जनता में इस आंदोलन ने ज़बर्दस्त आक्रोश तो पैदा किया ही है, साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी जनता में ये संदेश गया है कि ये लोग सिर्फ अंबानी–अदानी की चाकरी करते हैं। किसानों का संधर्ष एमएसपी व मंडी की गारंटी के लिए जारी रहेगा। लेकिन आज जनता की एकता की जीत तो हुई है, ये साबित हुआ है कि अगर जनता खड़ी हो जाए तो कोई भी तानाशाह टिक नहीं पाता, उसे मुँह की खानी ही पड़ती है।
【 ●श्यामलाल साहू,भाकपा-माले ऐक्टू से भिलाई इस्पात संयंत्र के श्रमिक नेता हैं. 】
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