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- ■आलेख : बाल साहित्य बच्चों का मित्र और मार्गदर्शक. ■डॉ. बलदाऊ राम साहू.
■आलेख : बाल साहित्य बच्चों का मित्र और मार्गदर्शक. ■डॉ. बलदाऊ राम साहू.
बाल-साहित्य कहने से मन प्रश्न कई तरह के प्रश्न उठता है। बाल-साहित्य क्या है? बाल-साहित्य कैसा हो?बाल साहित्य में किन तत्वों का समावेश हो आदि। वास्तव में यह एक विचारणीय प्रश्न है। बाल-साहित्य कविता और कहानी मात्र नहीं है। बल्कि बाल-साहित्य में वे समस्त तत्व समाहित होते हैं, जो बाल मनोविज्ञान पर आधारित हैं, और बच्चों के अंदर रुचियाँ पैदा कर रही होती हैं, उन्हें जिज्ञासु और कल्पनाशील बनाते हैं, जिससे पढ़कर बच्चे कुछ नया करने के लिए सोचते हैं, और कुछ करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं।
बच्चों का मस्तिष्क बड़ों से अधिक जिज्ञासु और उर्जावान होता है। इस जिज्ञासु और उर्जावान मस्तिष्क के लिए बाल-साहित्य बहुत ही नवीनतम ढंग से बच्चों के परिकल्पना के आसपास लिखे जाने की आवश्यकता है। बाल-साहित्य के अन्तर्गत कविता, कहानी के अतिरिक्त लेख, निबंध, जीवनी, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा, यात्रावृतांत, विज्ञान और समाज विज्ञान से संबंधित जानकारी, चित्रकथा, विज्ञान प्रश्नोत्तर एवं विज्ञान से संबंधित लेख आदि सम्मिलित हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बच्चों के ज्ञान में अवश्य वृद्धि हुई है, किंतु समझ में नहीं। बच्चों की समझ को विकसित करना और पुष्ट करना ही चरित्र निर्माण का पक्ष है। बाल-साहित्य मानवीय अनुभूतियों और संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है। बच्चों के अंतर्मन से तादात्म्य स्थपित कर उनके भाव-जगत को प्रभावित करता है, उनमें कौतूहल उत्पन्न करता है।
बाल-साहित्य के रूप में हमारी पौराणिक कथाएँ चरित्र निर्माण के लिए एक सशक्त माध्यम रही हैं| वर्तमान संदर्भों में लिखे जा रहे कथा, कहानी, गीत, कविता, लेख आदि विविध विधा के बाल-साहित्य सांस्कृतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को विकसित करने के बहुत बड़े माध्यम बने हैं। बच्चे जब बाल-साहित्य का अध्ययन करते हैं, तब स्वतः ही उनके अंदर एकता, प्रेम, दया, सहानुभूति, देश-प्रेम, उत्सर्ग, धैर्य, करूणा आदि के भाव पैदा होते हैं और उन्हें वे अपने व्यवहार में लाते हैं। हम सदैव बच्चों को सच बोलने की शिक्षा देते हैं, किंतु जब वे किसी कथा, गीत, कविता आदि के माध्यम से सच बोलने के परिणाम से परिचित होते हैं, तब वे अधिक रोमांचित होते हैं और उसे आत्मसात कर लेते हैं। इसलिए बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए मनोवैज्ञानिक और मनोरंजनात्मक बाल-साहित्य का होना आवश्यक है।
बाल-साहित्य बच्चों का मित्र भी है और मार्गदर्शक भी, साथ ही जीवन मूल्यों को जानने और समझने का माध्यम भी है। बच्चे बाल-साहित्य की कविता, कहानी, एकांकी, जीवनी या अन्य विधाओं के माध्यम से आए विचारों को अपने से जोड़कर देखते हैं और मनन करते हुए उनके गुण-दोषों का विश्लेषण करते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि इससे वे गुण और दोष, अच्छे और बुरे में अंतर करना जानते और समझते हैं ।
बाल साहित्य के क्षेत्र में अनेक संस्थाएँ कार्य कर रही हैं । वे इस क्षेत्र में शोध अनुसंधान भी कर रहे हैं परंतु हमें अभी तक आशातीत सफलता नहीं मिली है। बाल साहित्य भी निरंतर लिखे जा रहे हैं। बहुत से प्रतिष्ठित रचनाकार अगल-अलग विधाओं में रचना कर बाल साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। बच्चों के अनुकूल बाल-पत्रिकाएँ भी बच्चों को ज्ञान और संस्कार देने में पीछे नहीं हैं। चकमक, चंपक, बाल भारती, किसलय, देव पुत्र, नंदन, लोट-पोट, बालहंस, बाल वाटिका, नन्हे सम्राट, बच्चों का देश, बालप्रहरी आदि अनेक पत्रिकाओं के साथ-साथ कई स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र भी बच्चों के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं,किंतु बच्चों की जिज्ञासाएँ असीमित हैं, अपेक्षाएं बढ़ीं हैं, उनमें परिकल्पनाओं के नवीन पंख उग आए हैं| उनकी इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बाल साहित्यकारों को और आगे आना आवश्यक हो गया है। वैसे बाल-साहित्य न कभी मौन रहा है और न रहेगा। हाँ, यह यह अवश्य है कि आज के बच्चे वैश्विक बाजारवाद की चपेट में आते जा रहे हैं। वे टी.वी.में प्रचारित लोक-लुभावन विज्ञापनों को देखते हैं और उसी के अनुरूप सपने पालते हैं। यह समझने की आवश्यकता है कि बाल-साहित्य की कौन-सी विधा है, जो उनके सपनों के आसपास की है। इसके लिए वर्तमान में उपलब्ध बाल-साहित्य का विश्लेषण करने की आवश्यकता है और विश्लेषण के पश्चात् जो उसमें जो रिक्तता है, उसे भरने की आवश्यकता है, ताकि आज के जिज्ञासु बच्चे अपनी अपेक्षा के अनुरूप सामग्री का चयन कर सकें।
जब हम बाल साहित्य के माध्यम से बच्चों में चरित्र निर्माण की बातें करते हैं, तब बाल-साहित्य की उपलब्धता हमारे सामने एक प्रश्न के रूप में उपस्थित होती है, वर्तमान बाजारवाद बाल-साहित्य को बच्चों तक पहुँचने में बड़ा रोड़ा है, किंतु समस्या है तो समाधान भी है। बाल-साहित्यकार के अतिरिक्त शासन-प्रशासन शिक्षकों और अभिभावकों को बच्चों तक बाल-साहित्य तक पहुँचाने में अपने दायित्व का निर्वाह करना होगा, ताकि हम बच्चों में बाल-साहित्य के माध्यम से अच्छे गुणों कीअभिवृद्धि कर सकें और देश को योग्य नागरिक दे सकें।
■लेखक संपर्क-
■94076 50458
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