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- ■लेख : समय से पहले बूढ़े होते लोग- विजय कुमार तिवारी.
■लेख : समय से पहले बूढ़े होते लोग- विजय कुमार तिवारी.
बहुत लोगों को यह अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि वे सब के सब माननीय दिल पर ले लेंगे। यह दिल पर लेने लायक नहीं है,बैठकर या खड़ा होकर तनिक विचार करने का विषय है। यदि किसी को लगता है कि उनके साथ ऐसा नहीं है तो निश्चिन्त होकर आगे बढ़ जाइये। तनिक रुकिए,जरा याद कीजिए,आप के चेहरे पर मुस्कान उभरे कितना लम्हा,या दिन या महीने,साल गुजरे हैं। यदि पूरा का पूरा,बिना हँसे,मुस्कराये एक दिन यानी 24 घंटे बीत चुके हैं तो आप गिरफ्त में हैं। कोई यह भी पूछ सकता है,अभी इस क्षण ऐसा क्यों सूझ पड़ी है ऐसे नागवार विषय पर माथापच्ची करने की।
दरअसल किसी को देखकर बहुत निराशा हुई। दिन भर मेरा मन किसी दूसरे काम में नहीं लगा। घूम-फिर कर वह मंजर मुखर हो उठता रहा और चाहे-अनचाहे मुझे अपनी ओर खींचता रहा। ऐसी स्थिति में आप क्या करते हैं? बहुत देर तक टालना चाहते हैं,उससे दूर भागते हैं और अंत में उससे दो-चार हाथ करने के लिए बाध्य होते हैं। यह सारा कृत्य प्रमाणित करता है कि आप पूरी तरह गिरफ्त में हैं। मैंने ऐसा नहीं किया। मुझे मजा आता है ऐसे हालात से निपट लेने में। मैंने वही किया। हमारा उठाया हुआ पहला कदम ही दिशा तय कर देता है। बस इतना ही हर व्यक्ति को अपनी ओर से करना है। इतना कर लेते हैं तो आप अखाड़े में उतर चुके होते हैं। उम्र कोई भी हो, हमारी इतनी तत्परता हमें बूढ़ा होने नहीं देती। मान लिया,हमें अखाड़े में उतरने का मौका नहीं मिलने वाला है,हम बाहर खड़ा होकर तालियाँ तो बजा सकते हैं या खेलने,लड़ने वालों का हौसला बढ़ा सकते हैं। हमारी जीवन्तता का यही प्रमाण है।
जीवन में हम गलतियाँ करते हैं कि भीतरी ऊर्जा को लगातार नकारात्मक चिन्तन द्वारा दबाये रखते हैं। यह काम जाने-अनजाने प्रारम्भिक दौर से ही शुरु हो जाता है। कुछ हद तक वह परिवेश भी इसके लिए जिम्मेदार है जिसमें हमारा जन्म,पालन-पोषण हुआ है। इससे निकलने की आवश्यकता है। तनिक झटका देना है,थोड़ा साहस करना है,झटके से अपने शरीर को,सिर को हिला देना है। इसका सहज उपाय है,अपनी बाँहों को तीन-चार बार मुट्ठी बाँधकर उपर उठाइये,सामने से खोलिए और रीढ़ की हड्डी को सीधा कर लीजिए। जोर नहीं लगाना है,पूरी सहजता से। ध्यान रखिये,सारा खेल हमारे विचारों का है।
आप कहेंगे,मैं गरीब हूँ,कमजोर शरीर का हूँ,पढ़ा-लिखा नहीं हूँ,दबाया गया हूँ आदि-आदि। विश्वास कीजिए,आप दुनिया से बहाना चाहते हैं और स्वयं को धोखा देते हैं। तय कीजिए,आज से रोना नहीं है,कोई बहाना नहीं बनाना है और हमेशा तैयार रहना है। सफलता उन्हें ही मिलती है जो तत्पर,तैयार रहते हैं। हारते जाने की आदत बनती जाती है और जीतते जाने की भी। स्वयं का मूल्यांकन कीजिए,अभी इस क्षण आप कहाँ है? जहाँ भी हैं,खुश होकर उत्साह के साथ खड़ा हो जाइये। छोटी-छोटी जीतों का आनन्द उठाइये। आपकी जीतने की आदत बनती जायेगी। आपको लगता है कि मैं हार रहा हूँ। थोड़ी देर ठहर कर अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा को साहस पूर्वक एकत्र कीजिए,अपने मन-मस्तिष्क को बोलकर बता दीजिए,अब मुझे हारना नहीं है। यकीन कीजिए शीघ्र ही आपकी स्थिति बदलने लगेगी।
जब भी तनाव की स्थिति बने,तुरन्त हँसने या मुस्कराने का सायास प्रयास कीजिए। जब आप मुस्कराते हैं,पूरी धरती,वायु मण्डल,आकाश,प्राण-चेतना, सम्पूर्ण प्रकृति,आसपास के लोग,जीव-जन्तु,पेड़-पौधे सब के तनाव स्वतः ढीले पड़ जाते हैं और सहजता,मृदुलता उभर आती है। थोड़ी देर के लिए आपका प्रतिद्वन्दी भी अनुकूल हो जाता है और सकारात्मक सोच के साथ आपके प्रति स्नेह-प्रेम से युक्त हो सहज हो उठता है। यकीन कीजिए,जैसा चिन्तन आप करते हैं,प्रकृति की ऐसी व्यवस्था है, वही चिन्तन प्रतिक्रिया स्वरुप आपके पास वापस आता है। आप सतत प्रेम भेजिए,वैर-भावना को रोक लीजिए, देखिए, आपके पास वही प्रेम बढ़कर वापस आयेगा।
हम बहुत समय तक,बहुत सालों तक या अनेक जन्मों से वैर भाव बनाये हुए हैं,तो निश्चित ही मुक्त होने में उसी मात्रा में समय लगेगा। सबसे पहले ज्ञान पूर्वक,साहस पूर्वक अपने चिन्तन की दिशा बदलनी होगी। मेरा आग्रह है,इसी क्षण खड़ा हो जाइये और अपनी सोच को सकारात्मक कीजिए। निराश कभी मत होइये। ईश्वर की व्यवस्था में कोई गड़बड़ी नहीं होती। उसका गणित गलत नहीं होता और उसका कम्प्यूटर कभी फेल नहीं होता।
मैंने कहीं लिखा था,बूढ़ा होना नियति ही नहीं,लोगों की आदत भी है। आप अपना मूल्यांकन कीजिए,आसपास के लोगों की आदतों,क्रियाओं को देखिए,सब समझ में आ जायेगा। दादा भगवान जी लिखे हैं,जीवन में सारे टकरावों को टालिए। ईश्वर ने हमें श्रेष्ठ बनाया है। हम अपनी बुरी आदतों, कमजोरियों और लोभ-लालच में पतित होकर सर्वनाश करते हैं। अपनी सम्पूर्ण परिस्थितियों के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। जिस क्षण सजग होकर,चिन्तन में बदलाव करते हैं,सब कुछ अनुकूल होने लगता है।
यह संसार कर्म-प्रधान है। ईश्वर,प्रकृति और हमारा परिवेश हमें सक्रिय देखना चाहता है। जो सक्रिय है,उसकी उन्नति निश्चित है। वह बूढ़ा हो ही नहीं सकता।
कुछ सहज आदतें अपने में डाल लीजिए। हर किसी के भीतर के गुणों को देखिए और उसके दोषों से सावधान रहिए। नदी,तालाब,झील,अपने पूजा के स्थल, बाग-बगीचों में जाने की आदत बना लीजिए। चिड़ियों,पशु-पक्षियों और बच्चों के साथ समय बिताइये। भौंरों,तितलियों और फूलों को देखिए। एक-दूसरे को देखकर सादर अभिवादन या मुस्कराकर स्वागत कीजिए। छोटे या बड़े,स्त्री या पुरुष सबके प्रति सम्मान का भाव रखिए। मुझसे मिलने युवा दम्पति आये, साथ में छोटे-छोटे बच्चे थे। उत्साह नहीं दिखा उनके जीवन में। यह हादसा जैसा लगा। उनकी सम्पूर्ण ऊर्जा आपस के नकारात्मक चिन्तन और संघर्ष में खर्च होकर उत्साहहीन बना,बूढ़ा बना रही है।
हमारे जीवन में कोई समस्या है,हमें उस समस्या के समाधान का उपाय मिल-जुलकर करना चाहिए। हम एक-दूसरे को दोषी बनाते हैं और आपस में लड़कर हानि उठाते हैं। हमें हर हाल में अपने ईश्वर को याद रखना चाहिए। यह उसी की सृष्टि है,वही सुधार या बदलाव कर सकता है। वह हमारी प्रार्थना सुनता है। हमें सही तरीके से,सही मन से उस परमेश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए।
[ ●भुनेश्वर उड़ीसा के विजय कुमार तिवारी देश के प्रतिष्ठित समीक्षक हैं,’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिये वे यदा-कदा अपनी रचनात्मक योगदान देते रहते हैं.
●लेखक संपर्क-94317 73963 ]
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