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  • ■पुस्तक समीक्षा-‘दादी अम्मा गई किधर’. बाल गीतकार कमलेश चंद्राकर, समीक्षक विजय कुमार तिवारी.

■पुस्तक समीक्षा-‘दादी अम्मा गई किधर’. बाल गीतकार कमलेश चंद्राकर, समीक्षक विजय कुमार तिवारी.

3 years ago
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जीवन का सबसे मधुर अनुभव बचपन का होता है। उस समय बाल मन पूरी तरह पवित्र,सरल और सहज होता है। किसी भी तरह की अनुभूति ऐसी नहीं होती कि कोई अंगुली उठाये और प्रश्न खड़ा करे। बच्चों की शरारतें भी आकर्षक और मन को मोहने वाली होती हैं। दुनिया के तमाम बड़े लेखकों, चिन्तकों,साहित्यकारों ने बच्चों के मन को सर्वप्रिय स्वीकार किया है। दुनिया भर में बाल साहित्य लेखन खूब होता है और दुनिया भर के बच्चे उसका आनन्द उठाते हैं। हमारे अपने देश में भी हर भाषा में बहुतायत बाल साहित्य लिखा और पढ़ा जा रहा है। यह मानना और कहना गलत नहीं होगा कि बाल साहित्य और उसकी सम्पूर्ण विधाओं पर शोधपरक चिन्तन की बहुत आवश्यकता है। छोटा सा प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि क्या आज लिखा जा रहा बाल साहित्य, बाल मन की अभिव्यक्ति कर रहा है? साथ ही चिन्तन का विषय यह भी होना चाहिए कि बाल मन की मनोवैज्ञानिकता की सही पहचान हो पायी है?
मुझे स्वीकार करने में कोई असुविधा नहीं है कि इस दिशा में बहुत कुछ हो रहा है,साथ ही अभी बहुत कुछ करना या होना बाकी है। बाल साहित्य लिखने वालों की अभी बहुत कमी है और जो लिख रहे हैं उनके चिन्तन में बदलाव की आवश्यकता है। हर लेखक की पहली शर्त यह होनी चाहिए कि उसे बाल मनोविज्ञान की समझ हो। बाल मनोविज्ञान को समझे बिना उत्कृष्ट बाल साहित्य नहीं लिखा जा सकता। कुछ संकेत ऐसे समझा जाना चाहिए कि सभी बच्चे भिन्न-भिन्न प्रकृति के होते हैं और उनकी रुचियाँ, अभिव्यक्तियाँ,पसंद-नापसंद सब कुछ वैसे ही जटिलताओं भरी होती हैं जैसे बड़ों का। आज जो बाल साहित्य लिखा जा रहा है उसमें बाल-भावनाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो रही है। केवल एक पक्षीय या दो-तीन रसों का मिश्रण देखने को मिलता है, उसमें सभी रसों का समावेश आवश्यक है।
अभी कुछ दिनों पूर्व दुर्ग,छत्तीसगढ़ के श्री कमलेश चंद्राकर जी की बाल गीत पुस्तक “दादी अम्मा गई किधर” मिली है। यह बाल गीतों का संग्रह है और बहुत सुन्दर है। उनका लिखा बाल साहित्य खूब छप रहा है,कुछ संग्रह प्रकाशित हुए हैं और उनके द्वारा रचित बाल साहित्य की अनेक पुस्तकें प्रकाशनाधीन है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चंद्राकर जी के माध्यम से हिन्दी बाल साहित्य भंडार समृद्ध होने वाला है। इस संग्रह में कुल 42 बाल गीत हैं। आवरण सज्जा एवं भीतरी चित्र श्री हरि सेन जी ने बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है। बच्चे बहुत तेजी से भाव-विचार इन चित्रों के माध्यम से समझ जायेंगे।
पुस्तक के भीतरी आवरण पृष्ठ पर लेखक,पत्रकार,संपादक श्री रमेश नैयर जी का बहुत सामयिक लेख है। उनकी बातों से सहमत होते हुए उन्हें हृदय से बधाई देना चाहता हूँ। उनके उठाये मुद्दे सामयिक और ग्रहण करने योग्य हैं। मुक्तनगर,दुर्ग के ही श्री विनोद साव जी के समीक्षात्मक लेख “हिन्दी के अनुपम नर्सरी गीत” में बहुत सटीक ढंग से इस बाल गीत संग्रह पर प्रकाश डाला गया है।
संग्रह के बाल गीतों को पढ़ते हुए स्वतः ही कोई गेयता भीतर हिलोर लेने लगती है और बाल मन झूमने लगता है। यह चंद्राकर जी की अपनी क्षमता,विशेषता है। उनका शब्द-चयन अद्भुत है और शैली प्रभावशाली। एक-एक गीत का अपना आकर्षण है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि चार-चार पंक्तियों में उन्होंने भावों का सागर भर दिया है। बच्चे तो बच्चे,बड़े भी आनंदित होते हैं। श्री विनोद साव जी का कहना सही है,”बाल गीत तो एक साल के बच्चे से लेकर पूर्व माध्यमिक शाला के विद्यार्थियों तक के भिन्न आयु समूहों के लिए अलग-अलग स्तर पर लिखे जा सकते हैं और लिखे जाते हैं जो उनकी पाठ्य पुस्तकों में मिल जाते हैं। यहाँ जिन बाल गीतों की चर्चा हो रही है वे फकत तीन-चार साल के बच्चों के लिए लिखे गये गीत हैं।” राजभाषा आयोग,छत्तीसगढ़ के पूर्व अध्यक्ष,प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री दानेश्वर शर्मा जी के आशीर्वचन के बाद कहने के लिए कुछ शेष रह नहीं गया है। मैं भी कमलेश चंद्राकर जी के लिए शुभकामनाएं व्यक्त करता हूँ और उनके द्वारा श्रेष्ठ सृजन की कामनाएं करता हूँ।
‘आगे बढ़ते जायेंगे’ उत्साह,जोश और लक्ष्य के साथ एकजुटता की भावना से ओतप्रोत गीत का संदेश स्पष्ट है कि हम सभी आगे बढ़ते जायेंगे। ‘हुई सुबह’ बहुत ज्ञानप्रद गीत है। मां सुबह जगाती है अपने बच्चों को और खिड़की खोलने को कहती है। खिड़की खोलने से घर के भीतर की हवा शुद्ध हो जायेगी और घर में सुबह की धूप आयेगी। ‘मछली तैरे’ के माध्यम से बच्चों को मछली का ज्ञान दिया जा रहा है। मछली अपने डैनों के सहारे पानी की सतह पर या गहराई में तैरती रहती है। ‘भालू नाचे’ में बच्चे नये-नये शब्द सीख रहे हैं-भालू,मदारी,ढोल,भाषा और उनकी भाव-भंगिमा समझ रहे हैं।’सोन चिरइया’ में भी उपयोग में आने वाले बरतन की जानकारी हुई है। हर गीत अलग-अलग पात्रों से युक्त है जो ज्ञानवर्धक भी है और दृश्यों से भरा है। ‘बमबुकड़ी’ और ‘डायनासोर’ दोनों गीतों में अपेक्षाकृत बड़े आकार वाले जानवरों का उल्लेख है। बच्चों को संदेश है कि मगर पानी में रहता है और डायनासोर तो केवल माडल है,सचमुच का नहीं,अतः डरने की जरुरत नहीं है। झील का पानी मीठा और समुद्र का खारा होता है। बिलाव को देखकर चूहा भागता है। सबको अपना प्राण प्यारा होता है। गुड़िया,मुनिया, बेबी रानी सब गोल-गोल घूम रही हैं और उनकी घानीमूंदी भी गोल-गोल है। पिता बाबू को खुश करने के लिए कहते हैं,सारे खिलौने बाबू के लिए है,दीदी,भैया,पापा और दादू किसी और के नहीं है। ज्ञान के साथ-साथ भावनाएं और उनके मनोविज्ञान स्पष्ट हो रहे हैं।
बच्चे सीख रहे हैं कि नाव से नदी में यात्राएं होती है,उनकी नानी ढेर सारे खिलौने लायेगी और वे सब खूब खेलेंगे। कहीं-कहीं हास्य भी है ताकि बच्चे हँसना सीख सकें। राजा की पगड़ी है,उसमें कलंगी है और उसमें छोटी सी चिरइया बैठ गयी है। ‘मेरे मामा’ गीत में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शब्द ज्ञान दिया गया है-फ्लाइट, नाइट,लैंड और हाइट। ‘मेरा टब्बू’ में बच्चा चिन्ता करता है और मां से कहता है कि मेरे टब्बू को बुखार है,उसे खोजकर लाओ। ‘दादी अम्मा’ गीत में बच्चा पूछता है कि दादी अम्मा किधर गयी?कब घर वापस आयेगी? ‘झूला’ में बच्चे झूला झूल रहे हैं और खूब मजा ले रहे हैं। उनका परिचय चाँद से होता है। चाँद नीले रंग के आकाश में आता है, मुस्कराता है और अंधेरे को दूर भगाकर रोशनी फैला देता है। ‘खजाने’गीत में गणना है। सौ ताल-तलैया भरे हुए हैं, नौ खाली हैं जिसे राजा ने खजाने क्यों बना दिये? ‘चुपके-चुपके’ गीत के माध्यम से अनेक शब्द और स्थितियों की जानकारी हो रही है-चोर, राजा, बंगला, पहरेदार और खजाना। ‘बुढ़िया चली’ में बहुत स्थानीय शब्द हैं-गठरी, लुकाठी कथरी, पान, कपूरी, हाट-हटरी। ‘मिजाज’ में मौसम की जानकारी दी गयी है।
‘आये बादल’ में बरसात का चित्रण है। आसमान में बादल छाये हैं,बिजली चमक रही है और बादल पानी बरसा रहे है। ‘ओले’ में बच्चे ओला से परिचित हो रहे हैं। ओले बरस रहे हैं। बच्चे पकड़ना चाहते हैं, तबतक ओले पिघल जाते हैं। बरसात के मौसम में अचानक धूप खिल जाती है और आसमान में इन्द्रधनुष निकल आता है। उसे देखकर बच्चे खुश होते हैं। ‘मेरे दादू’ गीत में बच्चे समझ रहे हैं कि उनके दादू जलयान से सात समुद्रों की यात्रा करके शान से आये हैं। ‘खैर नहीं’ की अलग शिक्षा है। जबड़ा डर कर बैठ गया है। उसने दबड़ा देखा,वहाँ शेर नहीं है। शेर होता तो खैर नहीं थी। मुर्गा सुबह-सुबह बांग देता है। उसने कहा,अगर मैं बाग नहीं दूँ तो सूरज सोया रह जायेगा और सबेरा नहीं होगा। बच्चे ‘अगड़ी-टंगड़ी’ खेल रहे हैं और जीत-हार का रहस्य समझ रहे हैं। ‘मेरे जूते’ में घर में सामान को ठीक से रखने की बात की गयी है। बच्चा जूता खोजकर हार गया है जबकि वह जूता रखने की जगह पर है। ध्यान से देखकर न चलने वालों के लिए ‘पंडित जी’ के माध्यम से बताया गया है। बच्चा को मच्छर काट रहे हैं। वह मां से डंडा मांगता है मच्छर को मारने के लिए। यहाँ किंचित हास्य भी है।
‘गोला-गोला’ में बच्चे आग को पहचान रहे हैं। ‘कमंडल में’ गीत में अनोखे दंगल की बात हो रही है। दहाड़ते शेर को साधु ने कहा,मेरे कमंडल में तुम्हारे जैसे सौ-सौ शेर हैं,जल्दी से भाग जा। ‘लाल परी’ गीत में बच्चों के बीच लाला जी की लाल परी की धौंस की चर्चा है। ‘मकड़ी’ के बारे में बच्चे सीख रहे हैं कि वह जाल बनाती है,दौड़ लगाती है,कीट-पतंगे फंसते हैं और कभी स्वयं फंस जाती है। ‘मिल-जुलकर’ में बहुत सुन्दर शिक्षाएं हैं-रोना नहीं,चिल्लाना नहीं,हमेशा हँसना-हँसाना और कैसी भी विपत्ति आये, मिल-जुलकर निपटा लेना। ‘समय’ की महत्ता बतायी गयी है कि समय थामने से थमता नहीं है,बाँधने से बँधता नहीं है,समय के साथ चलने वाला ही आगे बढ़ता है। ‘आलस’ भी शिक्षाप्रद गीत है। आलस्य के हम दास नहीं हैं,आलस्य हमें पसंद नहीं है। हम जीवन भर काम करेंगे,जीवन कोई टाइम-पास नहीं है। ‘अच्छा काम’ में बच्चे संकल्पित होते हैं-हम अच्छा काम करेंगे,सच्चा व नेक बनेंगे और कैसी भी बाधा आयेगी,हम मिलकर दूर करेंगे। ‘दीवाली और ‘होली’ हमारे पवित्र पर्व हैं। बच्चे इन गीतों के माध्यम से दीवाली और होली की महत्ता समझ रहे हैं। ‘चलो बगीचा’ में बच्चे आम के बगीचे में जाते है,झोला भर कर आम लाते हैं। दादाजी का बगीचा है,पैसे की कोई बात ही नहीं है।
श्री दानेश्वर शर्मा जी की बात में मेरी भी सहमति है कि इन बाल गीतों को रचने के क्रम में कमलेश चंद्राकर जी स्वयं नर्सरी के बच्चे बन गये होंगे। यह किसी भी रचनाकार की बड़ी उपलब्धि है कि अपने श्रोताओं,पाठकों की मनःस्थिति में बस जायें। हिन्दी,अंग्रेजी और स्थानीय भाषा के शब्दों से सारे गीत भरे पड़े है। कहीं-कहीं गीतों का प्रवाह बाधित होता दिखता है। ऐसी स्थिति में उन्हें थोड़ा धैर्य धारण करना चाहिए और दूसरी-तीसरी बार प्रयास करना चाहिए। उनका प्रयास अच्छा है और सराहा जाना चाहिए। संग्रह में बाल मन को स्पर्श करती बहुत सी परिस्थितियों का चित्रण मनोहारी है। साथ ही गीतों के अनुरूप चित्रांकन श्रेष्ठ बन पड़ा है।

■विजय कुमार तिवारी
[ भुनेश्वर उड़ीसा,संपर्क-9102939190 ]
■कमलेश चंद्राकर
[ दुर्ग छत्तीसगढ़, संपर्क-9981924900 ]

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