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- ■छत्तीसगढ़ के कोडिया का ‘खोरवा बावा’. ■अतीत की सत्य घटना का साक्ष्य है-‘कोडिया का खोरवा बावा भस्मी चौरा’
■छत्तीसगढ़ के कोडिया का ‘खोरवा बावा’. ■अतीत की सत्य घटना का साक्ष्य है-‘कोडिया का खोरवा बावा भस्मी चौरा’
■लेख : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं जिन पर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता , लेकिन वे सत्य होती हैं | कई प्रमाण, कई साक्ष्य प्रस्तुत होते हैं उनकी पुष्टि के लिए | उसे झुठलाया नहीं जा सकता, उसे नकारा नहीं जा सकता , विश्वास करना ही पड़ता है | ऐसा ही एक साक्ष्य है, एक चौंरा है जिसे ‘खोरवा बावा का भस्मी चौंरा’ के नाम से जानते हैं | उस स्थान से गुजरते ही मस्तक अपने आप श्रद्धा से झुक जाता है |
स्थिति- दुर्ग- धमधा मार्ग पर दुर्ग से 21 कि. मी. की दूरी पर एक गांव है- शिवधाम कोड़िया | धमधा विकास खंड का पहला गांव | यह गांव शिव मंदिर की प्रसिद्धता के लिए भी जाना जाता है | यहां’ भुंई फोड़ भगवान शिव ‘का दिव्य व भव्य शिवलिंग है | मंदिर के पास ही चौराहे पर सांस्कृतिक मंच शिव मङ्गल भवन है | उसी से थोड़ा पहले तिराहा के एक कोने पर नीम पेड से घिरा यह भस्मी चौंरा अतीत की एक सत्य घटना का साक्ष्य है,श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है |
मालगुजारी जमाने की बात है| यही कोई 200 साल पहले | एक नामी वैद्य था | उसे नाड़ी का अच्छा ज्ञान था | वह झाड़ फूंक भी करता |मंत्र तंत्र जनता था | गांव बनाने में तो माहिर था | वह पशुओं का रोगोपचार भी करता | वह कहां का रहने वाला था, उसका क्या नाम था, किसी को नहीं मालूम | उसकी काबिलियत के कारण मालगुजार ने उसे पनाह दे दी थी | वह बावा के नाम से जाना जाता था | उस जमाने में डॉक्टर व अस्पताल नहीं होते थे | इस प्रकार के जानकारों की अच्छी पूछ परख होती थी |
महामारी- उन दिनों महामारी का प्रकोप बड़े पैमाने पर होता था | जहां महामारी फैली तो कभी गांव का गांव सफाया हो जाता था | बहुत लोग काल कवलित हो जाते | हैजा प्लेग जैसी बीमारियों से गांव उजड़ जाता था | लोग मानते थे कि गांव बनाने से इस प्रकार के प्रकोप से बचा जा सकता था या उसके प्रभाव को रोका जा सकता था | लोग मानते थे कि इस प्रकार की बीमारियां जादू- टोना- टोटका से होती थीं | भले ही यह अंध विश्वास लगे लेकिन उन दिनों इस प्रकार की बातों को नकारा नहीं जाता था | बैगा, गुनिया, ओझाओं से काम कराया जाता था | आज के इस वैज्ञानिक युग में भी गांव बनाने की प्रथा है |
हैजा का प्रकोप- पास के गांव ननकट्ठी में हैजा का प्रकोप हुआ | अनेक लोग काल के ग्रास बन गये | बचाव के तरीके असफल रहे | मौत का तांडव जारी रहा | तब बावा को वहां बुलाया गया | इस काम में वह माहिर था | जहां भी जाता, काम फतह करके आता था | वह गया, देखा सुनी किया | गांव के मुखिया को बुलाया | कहा- ‘काम मुश्किल है | इसमें जिनका हाथ है, वे मुझसे भी सिद्ध हैं | फिर भी मैं अपना काम करूंगा | ‘उसने आगे कहा- ‘हां, मुझे काम करके तुरंत लौटना होगा | वे मुझ पर उल्टा वार कर सकते हैं | तत्काल सीमा पार करना होगा | ‘ उसके लिए एक तेज चाल वाले घोड़े की व्यवस्था की गई | आज जैसे गाड़ी मोटर की सुविधा उन दिनों नहीं थी |
उसने काम किया | गांव के मेड़ों (सीमा) पर पहुंचते ही एक बाण (मंत्र बाण) उसके पैर में लगा | असह्य पीड़ा होने लगी | घायल अवस्था में वह गांव पहुंचा | मालगुजार को जगाया | कहा- ‘ मैं अब नहीं बचूंगा | मुझे मंत्र बाण मारा गया है | हां, एक उपाय से बच सकता हूं | मेरा पैर काट दिया जाय | ‘
सुनकर मालगुजार सन्न रह गया| उसने फिर कहा- ‘देर मत कीजिये | सोचिये मत | समय बहुत कम है | जल्दी कीजिये | ‘
आनन फानन में पैर काटने की व्यवस्था की गई | उन दिनों आज जैसे सुविधा सम्पन्न अस्पताल नहीं थे और न साधन, न डॉक्टर | वह बताते गया | घी कड़काया गया | पैर काटे गये | कड़कते घी में डुबाया गया | आजकल तो लोहे को तपाकर रखते हैं | उन दिनों की बात अलग थी | असह्य पीड़ा | लेकिन वह तो जीवट था | अदम्य साहस और शक्ति | साथ ही आत्म बल | पीड़ा सहन किया | धीरे धीरे घाव सूखते गया |
खोरवा बावा- अब वह खोरवा बावा के नाम से पुकारा जाने लगा | इस अवस्था में भी वह रोगोपचार करता | लोग उसके निदान- उपचार से ठीक हो जाते | बाहर से भी रोगी तकलीफें लेकर आते | खुश होकर लौटते | अब तो उसकी प्रसिद्धि काफी बढ़ गई | पिछली घटना और उसे मिली कामयाबी से वह न केवल अंचल में बल्कि दूर दराज में भी जाना जाने लगा | वह पशुओं को भी ठीक करता | लोग उसे देवता के समान मानते , उसकी इज्जत करते |
चिता भस्मी- मरते समय उसने कहा था कि उसकी चिता की भस्मी को गांव में एक स्थान पर स्थापित कर देने से गांव में कभी भी हैजा का प्रकोप नहीं होगा | दूसरे गांव के प्रभावित को समय रहते (जीवित अवस्था मे) निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा देने, हूम धूप दे देने से उसका पलंग खाली नहीं होगा | उसने यह भी कहा था कि गांव के पशुओं को एकटांगिया रोग नहीं होगा |
भस्मी चौंरा- उसके मरने पर गांव के लोगों ने उसकी स्मृति में चौंरा बनाकर उसमें स्थापित किया | वही चौंरा ‘खोरवा बावा भस्मी चौंरा’ कहलाता है | उसके बाद से गांव इस प्रकार की बीमारियों से पूर्णतः सुरक्षित है |
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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