■लघु कथा : महेश राजा.
♀ वह तोड़ती पत्थर
♀ महेश राजा
महानदी का पनीला क्षेत्र।यहाँ बाहुल्य से पत्थर की शिलाएं थी।आसपास ढ़ेर सारी पत्थरों की खदान खुल गयी थी।तब मशीनें नहीं आ पायी थी।
आसपास के गाँवों से मजदूर परिवार आकर बस गये थे।झुग्गी झोंपड़ियाँ बनाकर रहने लगे।
बड़े पत्थर कटाई के बाद काम आ जाते।छोटे पत्थरों से गिट्टी बनायी जाती है।एक एक हथौडी़ दी जाती।अधिक तर महिलाएं यह काम करती।पुरूष खेतों में काम करते।
आज भी एक पत्रकार आसपास की रिपोर्टिंग कर आगे जा रहे थे।अचानक उनकी नजरपत्थर से गिट्टी बना रही एक महिला पर पड़ी। थकी लग रही थी।कँधे पर छोटा बच्चा बाँधे थी।माथे से पसीने की बूंद टपक रही थी।एक और आश्चर्य की बात यह थी कि एक छोटी उम्र की बच्ची भी धीरे धीरे पत्थर तोड़ रही थी।उसके चेहरे पर टपके आँसू सूख चुके थे।धूल की परतें भी चढ़ आयी थी।
पत्रकार ने धीरे से पूछा-‘”बहन,आप काम कर रही हो यह तो समझ में आ रहा है,पर छोटी बच्ची, उसे भी काम…
अस्फुट स्वर में वह बोली-“बाबू ,यह छोटी है.अकेले घर में छोड़ कर नहीं आ सकती।इसके बाबू खेत जाते है।क्या करें साहब पेट की आग है।मेरी माँ भी यही काम करती थी,तब मैं मां के साथ जाती थी।आज ये मेरे साथ रह कर सीख जायेगी।बड़ी होकर उसे यही काम तो करना है।”
इतना कह कर वह अपने काम में जुट गयी।शाम तक ढ़ेरी पूरी करनी थी।
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