■कहानी : प्रेमलता यदु.
【 ●प्रेमलता यदु का जन्म रायपुर छत्तीसगढ़ में हुआ,वर्तमान में बिलासपुर. ●प्रेमलता जी की कहानियां गृहशोभा, सरिता,मुक्ता, संगिनी,सृजन महोत्सव, गृहलक्ष्मी, हरिभूमि, पत्रिका के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है. ●प्रेमलता जी मूलतः कहानी ही लिखती हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए प्रेमलता यदु की पहली कहानी प्रकाशित कर रहे हैं, कैसी लगी लिखें.
– संपादक 】
♀ कहानी : रिटायरमेंट
♀ प्रेमलता यदु
[ बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ]
मॉर्निंग वॉक से लौट कर जैसे ही अमरनाथ जी ने अपने घर के मेन गेट पर पांव रखा, उन्हें अपनी बहू निधि की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी, जो बाहर तक आ रही थी. वह अपनी सासू मां अर्थात अमरनाथ जी की धर्मपत्नी मिताली पर किसी बात पर नाराज़ हो रही थी और मिताली उसे बार बार शांत हो जाने की विनती कर रही थी. घर के भीतर प्रवेश करते ही अमरनाथ जी के कानों पर निधी के द्वारा कहे जाने वाले जो शब्द पड़े उसे सुनकर उन्हें समझने में वक्त नहीं लगा कि मिताली के हाथों से चाय का कप छूट गया है जिसकी वजह से चाय किचन में फ़ैल गई है और चीनी मिट्टी का कप टूट गया है.
अमरनाथ जी निढाल होकर सोफे पर बैठ गए और सोचने लगे कि कितने अरमानों से उन्होंने मिताली के संग मिल कर अपने इस आशियाने को सजाया था. सोचा था रिटायरमेंट के बाद आराम से आनंदपूर्वक दिन गुजारेंगे, उन्हें क्या पता था इस तरह अपमान के घूंट पी कर जीना पड़ेगा.
एक छोटी सी सरकारी नौकरी जिसमें वेतन कम और खर्चें अधिक होने के बावजूद मिताली ने पाई-पाई जोड़ कर यह गृहस्थी जोड़ी थी. इस ईट पत्थर से बने मकान को सही मायने में मिताली ने ही तो घर बनाया था और आज उसकी बूढ़ी हड्डियों में दुर्बलता आते ही उसे ही एक कप के टूटने और चाय के गिरने के कारण अपने ही घर में, अपनी ही बहू से अपमानित होना पड़ रहा है, इतना कुछ सुनना पड़ रहा है.
अभी अमरनाथ जी इन चिंताओं में डूबे हुए थे कि मिताली अपने अश्कों के मोतियों को छुपा कर मुस्कुराती हुई अमरनाथ जी के लिए चाय लेकर आ गई और उनके हाथों में देती हुई बोली-
” लीजिए आपकी गर्मागर्म अदरक वाली चाय.”
मिताली के चेहरे पर झूठी ही सही पर मुस्कुराहट तो थी और यह मुस्कुराहट मिताली के होंठों पर केवल इसलिए थी क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि उसने अमरनाथ जी के समक्ष अपना दुःख और अपने बेटे-बहू की सच्चाई पर पर्दा डाल रखा है. यही वजह थी कि अमरनाथ जी भी बेटे-बहू की सारी सच्चाई जानते हुए भी मिताली की तसल्ली के लिए उसके दुखों से अनभिज्ञ होने का अभिनय करते.
एक ही छत के नीचे रहते हुए कई बार मिताली और अमरनाथ जी को अपने बेटे अभिनव से बातें किए महीना गुजर जाता. अभिनव अपने दोस्त, पत्नी और कामों में इतना व्यस्त रहता कि उसके पास अपने माता-पिता से दो बोल बोलने तक का वक्त नहीं होता. एक शाम मिताली और अमरनाथ जी आंगन में बैठे अभिनव के बालपन की नटखट स्मृतियों को पुनः जी रहे थे कि सहसा अभिनव उनके सामने आ खड़ा हुआ, यह देख मिताली के मुखमंडल पर स्नेह और दुलार के भाव उभर आए. वह उसे अपने करीब बैठने को कहने ही वाली थी कि अभिनव बोला-
” पापा मुझे आप से कुछ कहना है.” अभिनव के स्वर में एक अजीब सा रूखापन और परायापन था जो किसी तीर की भांति अमरनाथ जी और मिताली के हृदय को भेदता हुआ चुभ गया, उसके बावजूद अमरनाथ जी स्नेह पूर्वक बोलें- “हां बेटा कहो क्या कहना है.”
“पापा मेरे सभी दोस्त पॉश इलाकों में रहते हैं. निधि और मैं भी अच्छे एरिया में रहना चाहते हैं. आप अपना ये मकान बेच दीजिए ताकि उन रूपयों से हम डाउनपेमेंट देकर एक अच्छी कॉलोनी में मकान खरीद सकें.आप दोनों भी चाहें तो हमारे साथ उस घर पर रह सकते हैं, वैसे मैं जानता हूं आप इस एरिया को छोड़ना नहीं चाहते इसलिए आप और मम्मी इसी एरिया में किराए का मकान भी लेकर रह सकते हैं मैं आता-जाता रहूंगा.”
अभिनव से इतना सुन कर मिताली जो अब तक अमरनाथ जी से अपना दर्द छुपाएं बैठी थी टुट गई और उसकी आंखों से आंसू बह निकले.यह देख अमरनाथ जी बोले-
“बेटा हमें एक हफ्ते का समय चाहिए.”
सप्ताह भर बाद एक सुबह जब निधि और अभिनव जागे तो उन्होंने देखा घर के दरवाजे पर ट्रक खड़ी है और उसमें घर का सामान लोड हो रहा है. यह देख अभिनव खुश हो गया क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी कि उसके पापा-मम्मी घर बेचने के लिए इतनी आसानी से तैयार हो जाएंगे लेकिन वह यह भी जानता था कि वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा और उनके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा है जिसे वें अपने मकान के लिए खोना नहीं चाहेंगे. अभी अभिनव यह सब सोच ही रहा था कि उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई. अभिनव और निधि ने मुड़ कर दरवाजे की ओर देखा तो सामने अमरनाथ जी खड़े थे.
अभिनव कुछ कहता इससे पहले अमरनाथ जी, अभिनव के हाथों में चाबी और चैक थमाते हुए बोले-
” बेटा यह घर की चाबी है, मैंने ट्रक में गृहस्थी के सारे जरूरी सामान रखवा दिए हैं, बस अब तुम दोनों अपना व्यक्तिगत सामान रख लो. मैंने पॉश कॉलोनी में किराए का मकान भी ढूंढ लिया है, आज से तुम दोनों वहीं रहोगे और यह चैक है मेरी क्षमता अनुसार तुम्हारे नये मकान के डाउनपेमेंट के लिए, बाकी के रूपए तुम लोन ले लेना. मैं यह घर बेच नहीं पाऊंगा क्योंकि यह केवल ईट पत्थर से बना मकान नहीं है. यह तुम्हारी मम्मी और मेरे सपनों का आशियाना है. जहां हमारी सुनहरी यादें बसी है, इस घर के हर कोने में आज भी हमारे जीवन के खट्टे मीठे पल सजीव है. तुम्हारे बचपन की किलकारियां आज भी हमारे कानों में गूंजती है. बेटा अगर ये केवल मकान होता तो शायद मैं बेच भी देता लेकिन अपने सपने और यादों को कैसे बेच दूं. ये बिकाऊ नहीं है और यही मेरा अंतिम निर्णय है.”
इतना कह कर अमरनाथ जी लौट गए और अभिनव आवाक खड़ा कभी चाबी और चैक को देखता तो कभी बाहर खड़ी ट्रक को…..
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