■मकर संक्रांति विशेष : कविता आसपास – दीप्ति श्रीवास्तव.
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■मकर संक्रांति
■दीप्ति श्रीवास्तव
तिल – गुड़ हमेशा से
बचपन दोस्त है पक्के
मिलते तो धौल जमाते
एक-दूजे संग लिपट जाते
दुनिया से क्या लेना-देना
बरस में नियत किया
दिन मिलने का
सूरज उत्तरायण हो
मकर राशि में प्रवेश करें
आंधी हो या तूफान
कोई न रोक सका इनको
मिलकर रंग- बिरंगी पतंग उड़ाते
पेंच लड़ाते
दांव-पेंच का पैंतरा कभी न आजमाते
और न दूसरों को लड़वाते
मेल-मिलाप का पाठ पढ़ाते
रगड़- रगड़ तिल का उबटन
मन का मैल साफ कराते
बहन सेम राह देखती
मकर-संक्रांति संग मनाने खिदमत में पेश हो जाती
खिचड़ी का दान करवाती
गरीबों में बांटी जाती
भेद-भाव को दूर भगाती
समानता की अलख जगाती
तिल-गुड़ जैसे बंधन मीठा
भारतीय संस्कृति से जुड़ा रहे हमेशा
■कवयित्री संपर्क-
■94062 41497
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