■कविता आसपास ■रेवा जी चोलकर
♀ माँ
♀ रेवा जी चोलकर
[ इंदौर-मध्यप्रदेश ]
मां???
मुझे अपनी ममता के
आंचल से क्यों?
गिरा दिया;?
जिस गोद में मुझे पलना था
और ममता की छांव में बढ़ना था
मेरा अंश ही मिटा दिया!
ले मां अब बस?
में तुमसे दूर हो गई?
तेरी बेबसी मेरी आंखों के;
आंसुओं के आगे चुर चुर हो गई?
मां मुझे अपनी ममता के
आंचल से क्यों गिरा दिया?
ये तो बता ना ?मेरी प्यारी मां;
तुम क्यों ?
इतनी मजबुर हो गई!
तेरे प्यार का अंश रूप बनकर आई थी
एक नन्ही सी कली थी में तो
तेरे प्यार के गुलशन की रानी
सावन के झूले झुलने से पहले ही अपनी
वसुंधरा से दूर हो गई
मां तुम क्यों इतनी मगरुर हो गई !
मां मुझे अपनी ममता के आंचल
से क्यों गिरा दिया!
ओ मां इतना तो बता दे
क्या कसूर था मेरा?
मेरी डोली पिया के
आंगन में उतरने से पहले ही
आंहें भरती रोती सिसकती
अपने पिया के अंगना से दूर हो गई
अब बोलो ना मां ?
तुम क्यों इतनी मजबुर हो गई
एक नन्ही सी कली
बगिया में खिलने से पहले
अपनी मालन के हाथों से
टूट कर मिट्टी की धूल हो गई!
मां मुझे अपनी ममता के?
आंचल से क्यों गिरा दिया!
एक मां की ममता ने?
नन्हे से अजन्मे भ्रुण को;
आकार में ढलने से पहले ?
मौत की नींद सदा के
लिए सुला दिया!
मां मुझे अपनी ममता की?
गोद से क्यों गिरा दिया!
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