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■छेरछेरा पुन्नी पर विशेष : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ दातापन के भाव जगाथे- छेरछेरा.
♀ डॉ. नीलकंठ देवांगन
[ शिवधाम कोडिया, जिला-दुर्ग, छ. ग. ]
कृषि संस्कृति के उपज’ छेरछेरा’ दान पुन्न के महा पर्व हे | अन्न दान महा दान माने जाथे | अन्न ले शरीर ला पोषन मिलथे जिनगी संवरथे अउ आगे बढ़थे | अन्न से मन बनथे | केहे गेहे – ‘जइसे खावे अन्न, वइसे बने मन |’ पशु पक्षी, छोटे जीव, बड़े जीव सबला पोषन चाही, अनाज चाही |
छत्तीसगढ़ वासी मन मं दान भावना- छत्तीसगढ़ ‘धान के कटोरा’ कहलाथे | इहां के रहवइया मन दान पुन्न मं विश्वास रखथें | दान देवइ ल बने मानथें, पुन्न समझथें | मानथें के दान देके हम अपन जीवन मं खुशी लाथन | केवल इही जनम मं नहीं, अगले जनम मं भी एखर पुन्न परभाव हमला सुख दिही | पूष महीना के पुन्नी के छेरछेरा के पुनीत परब आथे | ये दिन सबों खुले दिल ले अन्न के दान करथें | माता मन दान दे मं आघू रथें | ये दिन धान के दान दे के विशेष महत्व हे |
छेरछेरा मांगे के अनोखा अंदाज- छेरछेरा के दिन छोटे बड़े, टुरा टूरी, जवान बुढ़वा टोली बना के घरों घर जाके एके स्वर मं ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ल हेर हेरा’ या ‘छेरिक छेरा माई कोठी के धान ल हेरिक हेरा’ कहिके छेरछेरा मांगथें | कखरो सिर मं टोकरी त कखरो हाथ मं थैला | समूह वाले बोरा लेकर चलते हैं | छेरछेरा मांगे के अंदाज अनोखा होथे | कुछ बाजा गाजा के साथ नाचते गाते छेरछेरा मांगते हैं | कुछ डण्डा नाचते वातावरन ल महकावत नृत्यगान के रंग बिखेरत अन्न के साथ खुशियां बटोरथें | देवइया लेवइया दुनों खुश रहिथें |
कई टोली ये कहत घर मं घुसथें -‘छेर मड़कनिन छेर छेरा, माई कोठी के धान ल हेरिक हेरा’ यदि देवब मं कुछ देरी दिखिस त अनोखा अंदाज मं हक जतावत कहिथें -‘अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन ‘ फेर तो मिलना ही है- धान या कोदो | जेखर घर कोदो जादा होवय, धान नइ देके कोदो दे दयं | कोदो ल दरके कोदई बना लयं | कोदई के भोक्कड भात बनथे |
आनंद उल्लास के परब – जब खरीफ के फसल खेत ले कटके खलिहान मं रखे जाथे, मन प्रसन्न रइथे अउ जब धान घर मं कोठी मं लबालब भरे आंख के सामने होथे त खुशी के ठिकाना नइ रहय | दातापन के भाव जागथे| खुशी के इही मौका मं पूष पुन्नी के दान पुन्न के परब’ छेरछेरा’ आ जथे | पुन्न कमाय के अउ खुशी बांटे के दिन हे – छेरछेरा | घर के अउ गांव के जमो देवी देवता के शुभ आशीर्वाद पाय के अउ पुन्न अर्जन करे के ये परब हर गांव, हर शहर मं मनाय जाथे |
उमंग- हुल्लास ले छोटे बड़े सबो पूष पुन्नी के दिन खुशी खुशी अन्न दान करथें , इही छेरछेरा कहलाथे | ये दिन देने वाला दिल खोल के अन्न देथे अउ अपन ल धन्य मानथे त पाने वाला घलो खुशी ले सराबोर होथे | मन खिले खिले रहिथे | मिले अन्न के उपयोग अपन जरूरत के अनुसार कर लेथें | आपस मं मया- परेम, भाईचारा, मेल मिलाप के भाव जागथे अउ पक्का होथे | घर घर पकवान, कलेवा बनथे जेमा चांउर पिसान के दूधफरा, चीला, चंउसेला विशेष होथे | खुशी उंखर जिनगी मं अउ उंखर व्यंजन मं सुगंधि बगरा देथे |
छेरछेरा के पीछे के कहानी- बताथें के कलचुरी वंश के रतनपुर के राजा आठ साल तक मुगल शासक जहांगीर के इहां रिहिसे अउ जब अपन राजधानी रतनपुर वापस लौटिस तब उहां के परजा ओखर दर्शन अउ स्वागत करे खातिर पलक बिछाय इंतजार करत रिहिन | राजा उंखर बहुत पियारु रिहिसे | ओहा प्रजा पालक, प्रजा हितकारी रिहिसे | फेर रानी पुलकैना जादा उमंग- हुलास मं बिना प्रजा से मिलाय राजा ल महल मं ले गे | जब खियाल आइस त रानी संग राजा ह ओमन ल दर्शन दिस, उंखर से मिलिस अउ सोना चांदी के सिक्का बांटिस | ओ दिन पूष महीना के पुन्नी तिथि रिहिसे | राजा तब ओ दिन छेरछेरा मनाय के घोषना करिस | लोगन मन अपन खुशी के इजहार अपन कमाई के अंशदान देके करन लगिन | तब ले ये सिलसिला चले आवथे |
कर वसूल करे के उत्सव- पुराना जमाना मं कर के रूप मं अनाज (धान) इकट्ठा करके राजा तक पहुंचाय जाय | एखर बर एक दिन मुकर्रर रहय- पूष पुन्नी | बारह गांव मिलाके बरही, सात बरही मिलाके चौरासी होवय | उंखर मुखिया मन बरहीपति, चौरासीपति कहलावयं | उही मन कर वसूल करके राजा तक पहुंचावंय | मराठा काल मं जमींदार, मालगुजार मन कर वसूलंय |
बदलत समय मं अब येहा छेरछेरा दान परब के रूप मं रहि गेहे |पहिली जइसे खुशी के ये परब मं नवा कपड़ा पहिने या नवा व्यंजन बनाय के रिवाज नइ हे | लोक देवता के पूजा परंपरा घलो नइ हे | बस, घर घर जाके छेरछेरा मं अन्न मांगे जाथे | छेरछेरा के मतलबे हे- खुशी से देना, खुशी जाहिर करना |
मेला- मंडई के दिन- ये दिन छत्तीसगढ़ के कई स्थान मं मंडई- मेला के आयोजन होथे | कहूं धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन के साथ हफ्ता भर के कार्यक्रम घलो होथे | येमा तुर्तुरिया मेला (भांठा पारा), सगनी मेला (अहिवारा), काफी प्रसिद्ध हे | एखर अलावा बिरकोनी के चंडी मेला (महासमुंद), चरौदा (धरसींवा), अमोरा, रामपुर अउ रनबौर के पूष पुन्नी मेला खास हे |
छेरछेरा कृषि संस्कृति के महक हे | दान के ये परब मं ऊंच नीच, छोटे बड़े, जात पांत के भेदभाव नइ रहय | येमा याचक भी दाता अउ दाता भी याचक होथे |
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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