■रचना आसपास : प्रिया देवांगन ‘प्रियू’.
♀ बादल
बादल आये देखने, जंगल की हालात।
गिरते आँसू मेघ से, करते हैं फिर बात।।
करते हैं फिर बात, पेड़ सब ठूँठ पड़े हैं।
पौधे सारे नष्ट, सभी अब रूठ खड़े हैं।।
सुन जंगल की बात, मेघ फैलाये आँचल।
झूम उठे सब पेड़, धन्य वो करते बादल।।
भारी वर्षा हैं कहीं, कहीं तरसते लोग।
मानवता के कर्म का, करते सारे भोग।।
करते सारे भोग, काट जंगल अरु झाड़ी।
नहीं दिखे अब पेड़, सभी घर बनते बाड़ी।।
सुन धरती की बात, घिरे देखो जलधारी।
नहीं दिखे अब फूल, होय पीड़ा है भारी।।
♀ सूरज दादा आओ ना
सूरज दादा सूरज दादा, जल्दी से तुम आओ ना।
बहुत बढ़ी हैं जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।
गाय बैल अरु कुत्ता बिल्ली, ठंडी में वो भी रोते।
थर थर थर थर काँपे सारे, नहीं रात में वो सोते।।
लुका छुपी का खेल खत्म कर, अब आगे तुम आओ ना।
बहुत बढ़ी है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।
आग तापते हम तो सारे, घर अंदर घुस जाते हैं।
स्वेटर मफलर साल ओढ़ कर, गर्म हवा भी पाते हैं।।
कुत्ता बिल्ली सहमे बैठे, जाये कहाँ बताओ ना।
बहुत बढ़ी है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।
बेजुबान ये जीव जन्तु सब, ठंडी में मर जाते हैं।
किसे बताये अपनी हालत, रातों को चिल्लाते हैं।।
देखो हालत इनकी दादा, थोड़ा तरस दिखाओ ना।
बहुत बढ़ी है जाड़ा अब तो, इसको दूर भगाओ ना।।
[ ●प्रिया देवांगन ‘प्रियू’ छत्तीसगढ़ के जिला-गरियाबंद राजिम से हैं ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में ‘प्रियू’ की रचनाएं नियमित रूप से प्रकाशित होते रहती है. -संपादक ]
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