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- ■बालिका दिवस पर विशेष : बेटियां बेटों से कम नहीं : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
■बालिका दिवस पर विशेष : बेटियां बेटों से कम नहीं : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ बेटी को भी दें अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार.
♀ डॉ. नीलकंठ देवांगन
【 शिवधाम कोडिया, जिला-दुर्ग,छ. ग. 】
शिक्षा मानव मूल्यों की अमृतमय धरोहर है | जीवन की वास्तविकताओं से अंतर्क्रिया करने का नाम शिक्षा है | इसी के जरिये मनुष्य अपना कायाकल्प करते हैं | शिक्षा में स्त्री और पुरुष अलग अलग नहीं होते | दोनों मिलकर मनुष्य हैं | दुनिया का कोई इतिहास एक दूसरे को अलग रखकर नहीं रचा जा सकता | शिक्षा का संसार दोनों स्त्री और पुरुष के अंदर घटित होता है | तभी समन्वित रूप से सभ्यता व संस्कृति का विकास होता है | कोई भी बच्चा अपने जीवन में बड़ी से बड़ी शिक्षा पा सकता है यदि मां बाप उसके समुचित विकास में पूरा पूरा सहयोग देने का दायित्व ठीक प्रकार से निभा सकें | वह बच्चा चाहे बता हो या बेटी | बच्चे के विकास में माता पिता का दायित्व सर्वोपरि होता है |
आज की बालिका कल की स्त्री- शिक्षा के द्वारा मानव निर्माण व राष्ट्र निर्माण को गति दी जा सकती है तथा विकास की संभावनाओं को तलाश कर मूर्त रूप दिया जा सकता है | सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास में भी शिक्षा आवश्यक है | सबको शिक्षा सुलभ कराने निरंतर अनेक प्रयास किये जा रहे हैं | आज का बालक कल का पुरुष तथा आज की बालिका कल की स्त्री है | बालक और बालिका दोनों की शिक्षा पर समान रूप से ध्यान दिया जाना जरूरी है | बेटा के समान बेटी की सर्वांगीण उन्नति के लिए उचित वातावरण और आवश्यक परिस्थितियां पैदा करना माता पिता का सर्वोच्च कर्तव्य है | तभी उसके व्यक्तित्व का सही विकास हो सकेगा |
सृष्टा ने पुरुष के साथ स्त्री की उत्पति कर सृष्टि को विकास के मार्ग पर अग्रसर किया और उसे विधाता माता की उपाधि दी | मातृ शक्ति ने यदि प्राणियों पर अनुकंपा न बरसाई होती तो उसका अस्तित्व ही प्रकाश में न आया होता | सृजन शक्ति के रूप में जो कुछ भी सशक्त, संपन्न , विज्ञ और सुंदर है, उसकी उत्पत्ति में स्त्री तत्व की अहम भूमिका है | उसकी बचपन से शिक्षा संस्कार आवश्यक है |
बालिका बालक से कम नहीं- शिक्षा ज्ञान की संवाहिका है | जीवन निर्माण में इसकी विशेष भूमिका है | बच्चे के बौद्धिक और मानसिक विकास में यह आवश्यक है | बालक के समान बालिका को भी ज्ञान की परिपक्वता आवश्यक है| नारा भी है-
बेटी तो है धरा की शान
शिक्षा पोषण दें एक समान
आज जीवन के हर क्षेत्र में स्त्रियां पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं | स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं | जिन्हें शिक्षा सुविधा मिली, अवसर मिला ,वे पुरुषों से आगे ही रहीं | आजकल प्रतियोगी परीक्षाओं में बालिकायें बालकों से काफी आगे हो रही हैं | वे बुद्धि में तेज होती हैं | उन्हें शिक्षा का पूरा अवसर मिले तो वे अपनी श्रेष्ठता का परिचय दे सकती हैं |
मां बच्चे की प्रथम गुरु- शिक्षा और संस्कार का पहला पाठ बच्चा मां से ही सीखता है | यदि बालिकाओं को प्रारंभ से ही शिक्षा का समुचित लाभ मिले तो वे अपनी संतति को सच्चरित्र, सुसंस्कारी और विवेकी बना सकती हैं | सच ही कहा गया है – यदि पुरुष पढ़ा लिखा है तो वह अपना ही भला करेगा लेकिन स्त्री पढ़ी लिखी है तो उससे पूरा परिवार सुसंस्कृत और सुशिक्षित होगा |
मां का मातृत्व तो
मात्र शिशु होता है
पुत्र हो या पुत्री
दोनों स्तुत्य होता है
स्त्री सृजन की देवी प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष – स्त्री सृष्टि का सौंदर्य है | स्नेह उसकी प्रवृत्ति एवं अनुदान उसका स्वभाव है | शिशु का पहला आहार ममतामयी मां के वक्षस्थल से टपकता है | मां का दुलार पाकर अंतरात्मा हुलसती है | सृजन की यह देवी जिस घर में पहुंचती, गृह लक्ष्मी की भूमिका संपन्न कर स्वर्ग के अवतरण का अहसास कराती है |
स्त्री प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष है | कल्प वृक्ष पर चार फल – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष लगते हैं | 1- वह माता पिता का वात्सल्य उकेरती, 2 भाई को पवित्रता प्रदान करती, 3 पति को अपूर्ण से पूर्ण बनाती और 4 संतान का तो वह प्राण होती | एक नगण्य से जीवाणु को मनुष्य के दिव्य कलेवर में परिवर्तित कर देना उसकी सृजन शक्ति का चमत्कार है |
जीवन के हर क्षेत्र में स्त्री का बढ़ता वर्चस्व- राजनैतिक चेतना अंगड़ाई ले रही है | संविधान में स्त्रियों को हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व देने की चर्चा चल रही है, दिया जा रहा है | राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन, सेवा, विज्ञान, तकनीक, कला, साहित्य, संस्कृति हर क्षेत्र में स्त्री का बढ़ता वर्चस्व उसे समाज में महत्वपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित करेगा | परिवर्तन की इस बेला में आज की स्त्री समाज को नई दिशा देगी |
यह सत्य है कि शिक्षा से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं होती | अशिक्षितों की तुलना पशुओं और अंधों से की जाती है | बेटी मायका छोड़ बहू बन ससुराल में पहले से भिन्न नये जीवन क्रम को अपनाती है | दोनों जीवनों में जमीन आसमान जैसा अंतर होता है, पर वह उसे स्वाभाविक रूप से निभाती है |लक्ष्मी कही जाती है | कर्तव्य की मांग के अनुसार अपने आप को ढालने की क्षमता और आने वाले उत्तरदायित्वों को पूरा करने में समर्थ सिद्ध होने के लिए शिक्षा आवश्यक है |
आर्थिक उन्नति में उसका योगदान- गृह व्यवस्था, शिशु पालन के साथ आर्थिक उन्नति में भी नारी का महत्वपूर्ण योगदान होता है | कुटीर उद्योग सहित शिक्षा, चिकित्सा, कृषि, समाज कल्याण, सार्वजनिक सेवा, सरकारी विभाग में अपनी सेवा देकर समाजगत अविचारों, अनाचारों, दुष्प्रवृत्तियों से लड़ सकती हैं | घर परिवार के लिए अतिरिक्त आय का श्रोत खुल सकता है | इस दिशा में उनके कदम बढ़ चुके हैं |
शिक्षा, साहित्य, कला,संस्कृति, कृषि, सेना,स्वास्थ्य, राजनीति के क्षेत्र में उनके प्रवेश से नवयुग का सूत्रपात हो चुका है | सत्साहित्य सृजन से अश्लील साहित्य पर विराम लग सकता है एवं सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं में वृद्धि हो सकती है | नारी में जन्म जात सहृदयता व उदारता होती है | शासन तंत्र में उनके समावेश से राजनीति भी धर्मनीति की भांति पवित्र बन सकती है | इसके लिए उनका पढ़ा लिखा और सुसंस्कृत होना आवश्यक है | माता पिता अपने श्रेष्ठ आचरण प्रस्तुत कर उनमें शिष्टता जैसे दिव्य गुण भरें |
बेटा कुल का दीपक है तो बेटी घर की शान है , दो कुलों की मान है |
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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