■लघुकथा : सुधा वर्मा.
♀ अनोखा रिश्ता
♀ सुधा वर्मा
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
एक गाँव में दाऊ जी थे। सम्पन्न थे। उनके घर पर बहुत से नौकर काम करते थे। एक नवब्याहता गंगा भी अपने पति के साथ काम करती थी। वे लोग गाँव में नये आये थे। धीरे कमा कर वे लोग दो एकड़ जमीन खरीद लिये। अचानक पति की मृत्यु हो जाती है। अब पत्नी गंगा चना फोड़कर बेचना शुरु कर दी। बाकी समय में दाऊ के घर काम भी करती। बारीश ठंड के मौसम में दाऊ जी शाम को गंगा के घर जाने लगे। वह चना फोड़ कर रखती लोग घर से ही आकर ले जाते। किसी ने दाऊ जी को देखा तो उसे बदनाम करने लगे।
एकाएक अकाल पड़ गया। लगातार तीन साल के अकाल के बाद दाऊ जी टूट गये। पत्नी के जेवर गिरवी रख दिये। और बीमार पड़ गये। शहर में रहने वाले दोनों बेटे आये थे। एक दिन गंगा देखने आई थी। दरवाजे के पास ही बैठ कर हालचाल पूछ कर चली गई।
दाऊ जी को भिलाई अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। वे बहुत सिरियस हो गये। पैसे के लिये बेटे लोग खेत बेचने गाँव आये। तो गंगा तुरंत अपने खेत बेच कर पैसा लेकर भिलाई चली गई। दाऊ जी के बेटों को तुरंत पैसा नहीं मिला। वे लोग लौट गये। तब गंगा दाऊ की पत्नी के पास बैठी थी। बेटे लोग आये तो देखते हैं कि वह अपने आँचल से दो लाख रुपये निकाल कर उसकी माँ को दे रहे हैं।
बेटों ने कहा तुमने क्यों बेचा खेत हम लोग तो कर रहे थे।
गंगा का जवाब था–” मैं ब्याह कर आई तब से आपके घर और खेत में काम कर रही हूँ जो खेत खरीदी थी वह इसी पैसे का है तो इस पैसे को मैं वापस कर रही हूँ यह सब दाऊ का है।” दाऊ की पत्नी के आँखो में आँसू आ जाते हैं और बोलती है ” सब तुम्हे कितना गलत समझ रहे थे पर तुम तो हमारे लिये भगवान हो।”
दाऊ जी ठीक हो जाते हैं। उनकी पत्नी गंगा को अपने पास ही रखती है रात को ही वह अपने घर जाती थी। इस साल फसल अच्छी होती है पर दाऊ का कर्ज छूटने में पैसा चला जाता है। बड़े बेटे की शादी तय हो जाती है तो ये.लोग जेवर के लिये सोचते हैं। गंगा को पता चलता है तो अपने बारह तोले की पुतरी, पचास तोले का करधन और दो तोले का करणफूल लाकर आँगन में रख देती है। सबको आश्चर्य होता है वह बोलती है मेरे तो बच्चे नहीं है मैं इसका क्या करुंगी। ये सब आपके पैसे से ही खरीदी थी दाऊ। अब ये आपका है। मैं तो आपके घर ही दिनभर रहती हूँ तो मेरा क्या खर्च? दो साड़ी तो गौटनिन दे ही देती है। बड़ा बेटा उसका पैर छूकर कहता है आज से तुम मेरी माँ जैसी हो। अब यहीं रहना। दाऊ के आँखो में आँसू आ जाते है। वे कहते हैं ” मैं अपने मन की बात गंगा से कहता था। वह हमेंशा मुझे आड़े वक्त में पैसा देती थी। मेरा और उसका इतना ही सम्बंध है।
■लेखिका संपर्क-
■94063 51566
◆◆◆ ◆◆◆