■वसंत ऋतु पर दो कविताएं : ■देवेश द्विवेदी ‘देवेश’.
♀ वसंत
मञ्जरी लगी आमों पर
कोयल भी गान करे
भंवरा भी गुनगुनाय
आला वसन्त है।
वसन्ती बयार चले
नदिया भी खिलखिलाय
धरती के अधरों पर
मधु-प्याला वसन्त है।
अंग-अंग झूम उठे
मस्ती सी छाइ जाय
ऐसी नशीली इक
हाला वसन्त है।
तन और मन नाच उठे
हर्ष व उमंग से
ऋतुओं में ऋतुराज
निराला वसन्त है।
♀ आ गया वसन्त है
नव कोपले हैं खिल उठी,
कोयल ने छेड़ा राग है।
नव कान्ति से शोभित हुआ,
हर खेत और हर बाग है।
अलसी के नीले फूलों से,
सज गई हैं धरती मां।
सरसों के पीले फूलों ने,
शोभित किया सारा जहां।
हैं दृष्टिगोचर हर तरफ,
गेहूं की सुन्दर बालियां।तितलियों-भंवरों से सजी, वृक्षों की हर एक डालियां।
मदमस्त है अब हर कोई,
उल्लास की बयार से।
धरती करे अठखेलियां,
मधुमास की फुहार से।
‘देवेश’ इस आनन्द का,
अब नहीं कोई अन्त है।
सब हर्ष से स्वागत करें,
आ गया वसन्त है।
[ ●लखनऊ उत्तरप्रदेश के देवेश द्विवेदी ‘देवेश’. ●गद्य व पद्य दोनों विधा में सृजन करते हैं. ●’नवसृजन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था’ लखनऊ के महासचिव हैं. ●हिन्दी पत्रकारिता से लगाव के चलते कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग में सेवा दे चुके हैं. ●आकाशवाणी व दूरदर्शन में रचनाओं का प्रसारण. ●सम्मान व अलंकरण की लिस्ट लंबी चौड़ी है, कई संस्थानों से सम्मानित. ●’देवेश’ अनेक सामाज़िक,साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संस्थानों से जुड़कर हिंदी भाषा व साहित्य की सेवा में निरंतर सेवारत. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में ‘देवेश’ की पहली रचना. – संपादक● ]
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