छात्रा दीक्षा समुद्र द्वारा 15 फरवरी 2022 को किये गए सुसाइड समाचार ‘दैनिक भास्कर’ में पढ़कर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सीआईडी रायपुर के नरेन्द्र सिक्केवाल के मन के उदगार कविता में पढ़िए
♀ दीक्षा समुद्र
♀ नरेन्द्र सिक्केवाल
मेरी बेटी तूने क्यों कर लिया ‘डिसाइड’
अचानक करने का
‘सुसाइड’
केवल इतनी सी बात पर कि
‘वेलेंटाइन डे’
पर जिसको आना था नहीं आया
उसका इतना सा भाव तुझको नहीं भाया
फूल गुलाब का हाथ में थमाना था
और
इस तरह ‘वेलेंटाइन डे’ मनाना था
मैं सोचता हूँ यदि-
‘वेल इन टाइम’
तुम गुलाब के फूल को,
अपनी माँ के हाथों में दे देती
पिता की बूढ़ी आँखों में
चमक आ जाती
और इस तरह
‘वेलेंटाइन डे’ मना जाती
लेकिन तुमने ये क्या किया-
माँ के दुपट्टे को गले में बांध
नन्हें कोमल हाथों से
पंखे को थाम लिया
तुम संस्कारों में पली थी
भावों के झूले पर झूली थी
फिर भी जो तुमने किया,
क्या उसमें,
‘खुद की खुशी’ थी
तुमने सोचा है कभी
तुम्हारी खुशी के लिए
कितने सपने सजाये होंगे पिता ने
कितनी कल्पना की होगी
आगत भविष्य की तुम्हारे
अनंत की ऊंचाइयों
को छू लेगी मेरी बेटी
इस अभिलाषा में दिन रात
पंख तराशे होंगे तुम्हारे
तुम इन हाथों से रेल चला सकती थी
पकड़ बंदूक से दुश्मन के
छक्के छुड़ा सकती थी
तुम सक्षम थी,
बदल सकने में अपने परिवेश को
और
पाश्चात्य संस्कृति
के बिगड़े हुए वेश को
तुम बसंत को हंस कर बुला सकती थी
नेह से बंजरों में भी
फूल खिला सकती थी
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाकर तितलियां
भौरों से भी मन की बात
बुला सकती थी
तुम कतार की पहली
गिनती बन सकती थी
ऊंचाई पर ले जाने वाली
सीढ़ी बन सकती थी
तुम खुद विशाल
‘समुद्र’ थी संभावनाओ का
कई नदियों का आश्रय
स्थल बन सकती थी
लेकिन न जानें क्यों-
स्टूल पर चढ़ते समय
तुमको पिता का कंधा
याद नहीं आया ?
दुपट्टे को जब पकड़ा होगा
माँ का अमोल स्पर्श याद नहीं आया ?
जब गांठ बांधी होगी पंखे से
भाई के हाथों का
बंधन याद नहीं आया ?
खुदकुशी का विचार आया तो
भावनाओं पर अपने काबू कर लेती
गुमसुम न बैठी रहती कमरे में अकेले बेटी
माता-पिता दोस्तों से बातें कर लेती
खैर-
जो तूने किया अच्छा नहीं किया
घर आँगन को सुना कर दिया
तेरी याद खुशबू की
तरह महकती रहेगी
तेरी सूरत तुलसी चौरा सी
दमकती रहेगी
भले ही छिटक कर
दूर हो गई हो गोदी से
पिता के दिल में अपनी
मुनिया सदा बसती रहेगी●
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