- Home
- Chhattisgarh
- ■संगोष्ठी : डॉ. महेशचंद्र शर्मा रचित निबंध पुस्तक ‘साहित्य और समाज़’.
■संगोष्ठी : डॉ. महेशचंद्र शर्मा रचित निबंध पुस्तक ‘साहित्य और समाज़’.
♀ संस्कृत साहित्य जन सामान्य से जुड़ा है-डॉ. महेशचंद्र शर्मा.
♀ पुस्तक में आम जनजीवन का दुःख-दर्द रेखांकित है-डॉ. मृदुला शुक्ल.
♀ डॉ. राजन यादव ने लेखक डॉ. महेशचंद्र शर्मा का प्रकाशित लेखन का परिचय प्रस्तुत किया.
♀ डॉ. पूर्णिमा केलकर ने कहा-डॉ. शर्मा ने इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय साहित्य को विश्वव्यापी बना दिया है.
♀ कु.पूर्णिमा पैकरा ने कहा- ‘साहित्य और समाज़’ पुस्तक विद्यार्थियों के लिए विशेष उपयोगी है.
■खैरागढ़-छत्तीसगढ़
‘साहित्य और समाज’ लालित्यपूर्ण भाषा-शैली में रचित है। पुस्तक के सभी ललित निबन्ध सामाजिक जन जीवन से जुड़े हैं।कृतिकार आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा ने संस्कृत साहित्य में वर्णित लोक जीवन के दुःख-दर्द को रेखांकित किया है।स्त्री विमर्श और पारिवारिक जीवन पर भी अच्छे लेख हैं।माता-पिता की सेवा , अच्छी सन्तान और मातृशक्ति सम्मान पर भी पुस्तक में अच्छे विचार हैं। छोटे-छोटे सहज-सरस लेख युवा पीढ़ी का अच्छा मार्गदर्शन करते हैं। वहीं ‘लन्दन में भारतीय संस्कृति’ जैसे ललित निबन्ध पाठक के सांस्कृतिक स्वाभिमान को प्रोत्साहित करते है।” ये विचार हैं हिन्दी-संस्कृत विभागाध्यक्षा डा.मृदुला शुक्ल के।इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय , खैरागढ़ के संस्कृत एवं हिन्दी दौनों विभागों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘परिचर्चा संगोष्ठी’में डा.मृदुला शुक्ल ने उक्त विचार व्यक्त किये।इस्पात नगरी भिलाई के साहित्यकार डा.महेशचन्द्र शर्मा की दसवीं पुस्तक ” साहित्य और समाज ” पर उक्त परिचर्चा संगोष्ठी केन्द्रित थी। हिन्दी के प्राध्यापक डा.राजन यादव ने लेखक डा.शर्मा का परिचय कराते हुये उनकी विद्वत्ता और देश-विदेश के उनके शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक भ्रमण और विस्तृत और प्रकशित लेखन का परिचय कराया। डा.यादव ने बताया कि 42 वर्ष से अधिक का उनका पठन – पाठन,शोध और बौद्धिक यात्राओं की स्पष्ट छाप उनकी पुस्तकों में देखी जासकती है। वे अनेक बार पुरस्कृत और सम्मानित भी हुये हैं।लालित्यपूर्ण शब्दशिल्पी डा.शर्मा लोकप्रिय वक्ता भी हैं।जैसा उन्होंने जिया और देखा वैसा ही उन्होंने ” साहित्य और समाज ” आदि पुस्तकों में लिखा है। रामायण और महाभारत को हटादें तो भारतीय साहित्य में क्या बचेगा? उनकी इस रचना में भी ऐसी ही सत्प्रेरणायें मिलती हैं।इस अवसर पर डा.शर्मा समेत मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया गया। कुलपति पद्मश्री डा. मोक्षदा ममता चन्द्राकर ने डा.महेशचन्द्र शर्मा को बधाई एवं शुभकामनायें दीं। लेखकीय वक्तव्य डा. शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक के द्वारा मेरा प्रयास है कि संस्कृत आम पाठकों तक पहुँचे।विद्यार्थी और युवा वर्ग संवाहक बनें।संस्कृत हवा-हवाई ,अलौकिक भाषा या डैड लैंग्वेज नहीं है।यह कालातीत या अप्रासंगिक भाषा भी नहीं है। सर्वहारा, मज़दूर, किसान और ग़रीबों के दुख-दर्द और समाधान भी हैं। डा.शर्मा ने दिल्ली से प्रकाशित 600 पृष्ठ का पत्रिका विशेषांक ” अर्वाचीनसंस्कृतम् ” भी विद्यार्थीयों को भेंट किया।उन्होंने कहा कि इंग्लैण्ड के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वास्तुपूजन तिथि,अतिथियों और दिनों के नाम संस्कृत पद्यों में वहाँ प्रत्यक्ष देखे हैं।इस संगोष्ठी का संचालन करते हुये संस्कृत विभाग की सहायक प्राध्यापिका डा.पूर्णिमा केलकर ने कहा कि डा.शर्मा ने इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय साहित्य को विश्वव्यापी बनादिया है।कु.पूर्णिमा पैकरा ने कहा पुस्तक विद्यार्थियों के लिये भी विशेष उपयोगी है।कु.बरखा गौर ने कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वन्दना से किया। मौके पर साहित्यविद् शिक्षकों, अनिल टण्डन आदि अतिथि शिक्षकों के साथ ही सन्दीप अग्रवाल, कु.रीणू पटेल,थनेश्वर कुमार,कु.कीर्तिवाला पटेल,योगेन्द्र लिल्हारे,कु.कविता खरे,कु.चाँदनी सिंह,कु.खुशबू पटेल और कु. कामिनी वर्मा समेत बड़ी संख्या में बी.ए.तथा एम.ए. के विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में उपस्थित रहकर साहित्य-शिक्षा का लाभ उठाया।
●●● ●●● ●●● ●●●