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■काव्यगोष्ठी :
♀ वरिष्ठ कवयित्री पद्ममा जोशी निवास पर विगत दिनों सरस काव्यगोष्ठी सम्पन्न हुई.
♀ आथित्य विद्या गुप्ता,पुष्पा तिवारी,अनिता करडेकर.
♀ आभार व्यक्त पद्ममा जोशी
♀ संचालन नीलम जायसवाल और सीमा साहू
■भिलाई-
वरिष्ठ कवयित्री पद्ममा जोशी के निवास में आयोजित सरस काव्यगोष्ठी की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई. सीमा साहू ने सरस्वती वंदना करते हुए कविगोष्ठी का आगाज़ की.
पद्ममा जोशी-
गिले आँचल के मोती छुपाऊं कहाँ, ढूंढने मेरे लाल मैं जाऊं कहाँ…
रविशंकर कलौसिया-
अपना पढ़ा और समझा जाना,हर व्यक्ति ने पकड़ रखी है, उनकी किताब पढ़ने समझने के दावे..
युवा कवि रवि-
आंगन में कुछ इतनी तपिश थी,
अंदर अंदर सुख गया,
गमले में जो फूल खिला था,
पलभर हंसकर सुख गया.
विद्या गुप्ता-
जानकर जाना नहीं,
पहचान कर अनजान हो
सृष्टि की पहली छुअन
हर रूप में पहचान हो.
रियाज खान गौहर-
यार ने जब रुलाया ग़ज़ल हो गई
जब भी हंसाया ग़ज़ल हो गई
बेखबर जा रहा था किसी ने मुझे
अपना कहकर बुलाया ग़ज़ल हो गई.
पुष्पा तिवारी-
चाह नहीं मुझे मशहर होने की
आप मुझे पहचानते हो
बस इतना ही काफी है
हज़लकार रामबरन कोरी ‘कशिश’-
सच कहूं उसने सुकू पाया नहीं है
कान फुर्सत में जो खुजलाया नहीं है
लुत्फ झूले का बराबर दे रही है वो
खाट जिसका एक तरफ पाया नहीं है…
माला सिंह-
कमजोर नहीं कुसुम हूँ
पुलकित वसंती प्रेम मेरा
मधुबन को समर्पित हूँ
नारी हूं मैं नारी हूं
मैं सृष्टि विस्तारी हूँ…
शेख निज़ाम राही-
मेरे बच्चों ने मुझे बेघर कर दिया
मैं जरूरी नहीं अपने घर के लिए
अनिता करडेकर-
सवाल पूछती नज़रे मिला
असहमति जताते लड़की
उन्हें अच्छी नहीं लगती
बहुत खलता है उन्हें उसका
खेत में ट्रेक्टर या
आसमान में हवाई जहाज उड़ाना
या खेल के मैदान में चौके-छक्के लगाना…
डॉ. नौशाद सिद्दीकी ‘सब्र’-
सुबह की रस्म निभाना बहुत जरूरी है
दिलों को पहले मिलाना बहुत जरूरी है
हवा जमाने की तुमको कहीं ना बहका दे
कोई तो घर में से सयाना बहुत
जरूरी है…
यूसुफ सागर-
वह लम्हा मेरी जिस्त्त का क्या खूब रहा है
जो लम्हा उनकी याद से मंसूब रहा है..
नीलम जायसवाल-
वही है प्रेम जिसमें राम झूठे बेर खाते हैं
हरि व्यंजन तज कर विदुर के द्वार आते हैं
भरत का प्रेम ही तो था
कभी बैठे ना सिंहासन
कभी यमराज सावित्री से हार जाते हैं…
सीमा साहू-
ते बाघ में बैठ के आजा दाई
ते करे सोलह श्रृंगार वो
तोर जस ला गांवव दाई
मेहा बारम्बार वो
लाली लाली चुनरी पहने
लाल नरियर लाल सुपारी
लाल ध्वजा हे,
लाली लाली लाल हरन दाई
तोर जस ला गावन बारंबार ओ…
पारिवारिक माहौल में रचनात्मक काव्य गोष्ठि का लुत्फ़ सभी उपस्थित श्रोताओं ने भी लिया.
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