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■कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी [चरोदा-भिलाई, जिला-दुर्ग,छत्तीसगढ़]
♀ सहजीवी [Symbiosis]
जानता है कृषक
गेहूँ के साथ
चने की बुआई से
लाभ दोहरा ही होता है,
क्योंकि
बिना अतिरिक्त प्रयास के ही
वे एक दूसरे के
जीवन के पूरक बन जाते हैं-
देकर एक-दूजे को
अपने भीतर का
थोडा़-थोडा़ सत्व।
जानता नहीं गृहस्थ-
मूक दानों से हरियाने तक
सहजीवी बनकर
औरों को संतुष्ट रखने का
यह बीज मंत्र
तभी तो
उखाड़ फेंक रहा है
साथ जी रहे रिश्तों को-
खरपतवार की तरह।
♀ परजीवी[Parasites]
जितना सहज है
परजीवी शब्द को
परिभाषित करना
उतना ही दुष्कर है
उसके साथ जीना…
विविध रूप-रंगों में,
अलग- अलग परिवेशों में पलते
दृश्य- अदृश्य परजीवी-
जानते हैं केवल
परपोषी(होस्ट)का विनाश कर
स्वयं का विकास करना।
अमरबेल सा फैलकर
हमारे जीवन में-
चूस लेते हैं सारा सत्व
अस्तित्व का…
घर में बच्चे,
परिवार में रिश्ते,
दफ्तर में अधिकारी,
समाज में नेता,
स्वयं में-
क्रोध-लोभ,मद-मोह।
आह!
इतने सारे पैरासाइट्स
और अकेला जीवन-
जीर्ण-शीर्ण खंडहर सा-
मृतप्राय।
■कवि संपर्क-
■83494 08210
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