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- ■मजदूर दिवस पर ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’ [सुरगी जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़] की दो कविताएं.
■मजदूर दिवस पर ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’ [सुरगी जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़] की दो कविताएं.
♀ लॉकडाउन और मजदूर
मैं मजदूर हूँ
लॉकडॉउन में
मैं ही सबसे ज्यादा
मजबूर हूँ
अपने गाँव /शहर से
सैकड़ो /हजारों किलोमीटर
दूर हूँ.
घर की चिन्ता में
चूर हूँ
बसें /रेलगाड़ियाँ चलना
बन्द है .
मेरे भीतर एक अजीब सा
द्वन्द्व है .
मैं बीवी बच्चों सहित
जान की परवाह किए बगैर
पैदल चलने को
मजबूर हूँ .
मैं मजदूर हूँ …
चलते चलते बीवी
थक जाती हैं
गर्भ का भार
ऊपर सर पर भी
बोझ है.
करना चाहती हैं विश्राम
पर क्या करें!
मैं अभी अपनी मंजिल से
बहुत दूर हूँ.
मैं मजदूर हूँ…
पैरों में छाले
पड़ गए हैं
आँखों से अश्रुधारा
बह रही है.
बोतल में जो पानी था
वह भी अब खत्म!
ऐसा लगा मानो
जिन्दगी भी खत्म!
बच्चों को ढांढस बंँधा कर
मैं आगे बढ़ने को मजबूर हूँ
मैं मजदूर हूँ…
जो भी साधन मिल जाएँ
उसमें जानवर की तरह
चलने को
मैं मजबूर हूँ
मैं मजदूर हैं…
जैसे तैसे हम
अपने गाँव /शहर
पहुंच गए.
ऐसा लगा मानो
हम जन्नत में
पहुंच गए.
पर ये क्या!
यहाँ भी हम फँस गए
अब क्वारांटाइन सेंटर में
रुकने को मजबूर हूँ
अपने घर से अभी भी
मैं दूर हूँ
मैं मजदूर हूँ …
लॉकडॉउन में
मैं ही सबसे ज्यादा
मजबूर हूँ.
मैं मजदूर हूँ…
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♀ मजदूर के पीरा
जाँगर टोर कमावत हौं मँय हा,
भले नंगत के मोला खाँसी हे ।
नइ जानव कभू हलवा -पुड़ी,
मोर भाग मा रोज बोरे बासी हे ।
वोमन हावय अब्बड़ बड़हर,
ऊंकर सेवा बर दास -दासी हे ।
नइ जानव कभू घूमई-फिरई ला,
इहाँ कदे कर मथुरा – काशी हे ।
मोर बर इही तीरथ -धाम गा,
भुइयां कन्हार अउ मटासी हे ।
वोमन उड़थे रोज अगास मा गा,
मंहगाई मा मोर जिनगी फाँसी हे ।
घिलर -घिलर के जीथौं मँय हा,
ऊंकर मुख मा नंगत के हाँसी हे ।
ऊंकर भाग मा हे छप्पन भोग,
मोर भाग मा रोज बोरे बासी हे ।
■कवि संपर्क-
■79746 66840
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