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■बोरे बासी दिवस : गजब बिटामिन भरे हे छत्तीसगढ़ के बासी म…
■सतीश पारख [उतई दुर्ग]
छत्तीसगढ़ मा बोरे बासी दिवस के रूप मा मनाए के शासकीय निर्देश होय हावे ,छत्तीसगढ़ राज्य बने के 22 बछर बाद ये पहिली मौका हे की हमर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल जी ह हमर छत्तीसगढ़िया संस्कृति ला जीवंत रखे खातिर नित नवा नवा जतन करत हे, जम्मो छत्तीसगढ़ वासी ऊंकर ये सोच ला परनाम करत हन*
आज के बछर मा छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल जी के एक मयारुक कविता मोला याद आवत हे-
बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,
इसे न टालो हाॅंसी में.
गजब बिटामन भरे हुये हैं,
छत्तीसगढ़ के बासी में..
पहिली उंकर ए कविता ल हमन अपन परंपरा के संरक्षण-संवर्धन खातिर लिखे गे मयारुक रचना समझत रेहेन. फेर जब ले वैज्ञानिक मन बासी उप्पर शोध कारज करिन हें अउ बताइन हें, के बासी खाए ले ब्लडप्रेशर ह कंट्रोल म रहिथे, गरमी के दिन म बासी खाए ले लू घलो नइ लगय, एकर ले हाइपर टेंशन घलो कंट्रोल म रहिथे. गरमी के दिन म बुता करइया मन के देंह-पाॅंव के तापमान ल घलो बने-बने राखथे. संग म पाचुक होए के सेती हमर पाचन तंत्र ल घलो बरोबर बनाए रखथे. जब ले ए वैज्ञानिक शोध ल जानेन तबले अपन पुरखा मन के वैज्ञानिक सोच अउ अपन परंपरा ऊपर गरब होए लागिस.
आज अचानक ए बात के सुरता ए सेती आवत हे, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ह अब ले 1 मई श्रमिक दिवस ल बोरे-बासी के महत्व ल जन-जन म बगराए अउ एला अपन पारंपरिक गरब के रूप म जनवाए खातिर ‘बोरे-बासी’ डे के रूप म मनाए के अरजी करे हे.
वइसे हमर संस्कृति म ‘बासी’ खाए के एक रिवाज हे. भादो महीना के तीजा परब म जब बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आए रहिथें, तब उपास रहे के पहिली दिन करू भात खाये के नेवता दिए जाथे अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाये के नेवता देथें. फेर ए नेंग ह सिरिफ तीजहारिन मन खातिर ही होथे. आज बासी के महत्व ल समझे के बाद मोला अइसे लागथे, के अभी जेन ‘बोरे-बासी’ डे मनाए के बात सरकार डहार ले होवत हे, वोला ‘बासी उत्सव’ के रूप म मनाए जाना चाही. जइसे आने उत्सव के बेरा जगा-जगा वो उत्सव ले संबंधित आयोजन करे जाथे, ठउका वइसनेच जगा-जगा बासी पार्टी या बासी खवाये के भंडारा आयोजन करे जाना चाही.
अब तो बासी खवई ह सिरिफ परंपरा या रोज के भोजन ले आगू बढ़के सेहत अउ रुतबा के घलो प्रतीक बनत जावत हे, तभे तो फाइवस्टार होटल मन म घलो एला बड़ा शान के साथ उहाँ के मेनू म शामिल करे जाथे, अउ लोगन वतकेच शान ले एला मंगा के खाथें घलो.
मोला अपन चार डांड़ के सुरता आवत हे-
दिन आगे हे गरमी के, नंगत झड़क लव बासी
दही-मही के बोरे होवय, चाहे होवय तियासी
तन तो जुड़ लागबेच करही, मन घलो रही टन्नक
काम-बुता म चेत रइही, नइ लागय कभू उदासी
■संपर्क-
■78690 93377
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