■रचना आसपास : परमेश्वर वैष्णव [ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
♀ नया दौर
शब्दों ने मुंह ढाँक लिए
वाक्य छिप रहे कटी नांक लिए
तर्क हुए अपमानित
कुतर्क हो रहे सम्मानित
सार्थक अर्थ हुए अमान्य
द्विअर्थी हुए परिभाषित
चहल पहल गुमसुम खड़ी
सन्नाटे की पूछ परख बढ़ी
संवाद हुए बेस्वाद कथनी में
कटु वचन घुल रहे चापलूसी की चसनी में
सच की भीषण तपीश से सब दुखी
मिथ्या प्रशंसा में फूल कर हुए सब सूरजमुखी
सरलता का चलन हुआ अब मुश्किल
सुनी राह तक रहे जटिल बुझदिल
बार बार गुल होती मोहब्बत की बिजली
विश्वसनीयता की साँझ भी अब ढली
उम्मीद सुबह को घेर रही निराशा की बदली
भ्रांति की आंधी में भटक रही मोहब्बत की खुशबू पहली
सम्मान पर टिका है अयोग्य का ध्यान
मौलिकता ओढ़ के मेहनत पड़ी अनजान
आज सच की बढ़ रही बेचैनी
छद्म फरेब की दृष्टि हो गई पैनी
क्षतविक्षत लहूलुहान पड़ा भाईचारा
धर्मध्वज उठा घूम रहा हत्यारा
दम साधे छिप रही समता स्वतंत्रता
पत्थर लाठी तलवार लहरा रही सम्प्रदायिकता
समूहों में हो रही झड़प
सहसा मानवता उठी तड़प
ये रक्तिम हालात ये मौन जज्बात
आगत विगत आज कल की नही
नाम के लिए नकल की नहीं
असल बात कुछ और है
छद्म राष्ट्रवाद का भयावह मिथ्या प्रदर्शन
मनुष्य के खिलाफ मनुष्य द्वारा संचालित
आज का यह नया दौर है
[ ●कवि परमेश्वर वैष्णव,छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़ के संगठन सचिव एवं भिलाई-दुर्ग प्रगतिशील लेखक संघ के अध्य्क्ष हैं. ●संपर्क-*94255 57048 ]
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