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■लघुकथा : नीना सिन्हा [पटना-बिहार]
♀ खटका
“एक बार सोच ले बेटी! पुलिस में शिकायत करके तुमने जिंदगी बर्बाद कर ली है। सब जान गये हैं कि…। इसकी अच्छाई देख! क्षमा माँग कर ब्याहता बनाने को राजी है।”
“ब्याहता नहीं माँ, रखैल! यह छछूंदर, कॉलेज में मेरा सीनियर है। नॉन ग्रेजुएट था, तभी इसके पिता ने मामूली शक्लोसूरत की एक अनाथ मालदार लड़की से इसकी शादी करा दी थी। अपनी पत्नी के पैसों पर ऐश करता है और कॉलेज की खूबसूरत लड़कियों के पीछे लार टपकाता फिरता है। दो साल से मेरे आगे पीछे, जाने कितने ही प्रेम प्रस्ताव, उप पत्नी बनाने का लालच दिया। लगा होगा, निर्धन परिवार से हूँ, झाँसे में आ जाऊँगी। दाल नहीं गली तो निरंतर छेड़छाड़। तंग आकर उसके कान पर मेरा झन्नाटेदार झापड़ पड़ा। उसके बाद, जानती ही हो।”
“हाँ बेटी!” अश्रु छुपाती माँ बोली, “पर तू सोच! तेरे लिए दान दहेज का इंतजाम भी नहीं कर पा रहे थे हम, अब इतने बड़े घर से रिश्ता…”
“इसे रिश्ता आना कहते हैं, माँ? इस प्रकार तो एक विकृत परंपरा प्रारंभ होगी। हर कामी पुरुष पसंदीदा स्त्री के साथ जबरदस्ती कर बाद में रिश्ता भेजेगा। सोच होगी, ‘तुम मेरी जूठन थी, मेरे अलावा तेरे पास कोई चारा न बचा था।’ पीड़िता को ब्याहता बनाकर वह कानूनी सजा से भी बच जाएगा।”
“मैं समझ गई बेटी! दुनिया सचमुच जंगल बन जाएगी। जिसे जो पसंद आए, उसपर झपट पड़ेगा। उसके बाद ब्याह की पेशकश, उपपत्नियों का चलन…। स्त्रियाँ यूँ ही असुरक्षित हैं, बाद में उनकी दशा भेड़-बकरियों से भी बदतर होती चली जाएगी, जो चाहे हाँककर ले जाए, जैसा चाहे सलूक करे। तेरे पिता के साथ बैठक में है वह, मैं उसे मना कर देती हूँ।”
“संभलकर जाना! विकृत मानसिकता का इंसान है, तुम्हारे और पापा के साथ बदसलूकी न कर बैठे। मैं चलूँ?”
“नहीं बेटी! तू अंदर ही रह, मैं उसकी औकात बताती हूँ। कुछ ऊँच-नीच हो तो पुलिस को फोन कर देना।”
♀ नागपाश
नदी के कछार के निकट मित्र की शादी में आए राजीव का ध्यान बारंबार एक ओर खिंचा जा रहा था।
“किस उधेड़बुन में लगा है,भाई?”मेजबान मित्र ने पूछा।
“छोड़ भाई ! मैं पत्रकार हूँ,तू जानता है, पूछना व्यर्थ होगा, सच बताएगा नहीं।”
“बताऊँगा, प्रश्न तेरे चेहरे से पढ़ लिया था। यहीं का बाशिंदा हूँ, ध्यान रहे, अखबार में नाम न आये।”
“ कॉलेज का मित्र हूँ , तेरे घर का मेहमान भी। वादा करता हूँ, अब बता!”
“यहाँ नदी की धारा बदलने एवँ बरसात में पानी का बहाव कम हो जाने से काफी जमीन बाहर निकल आई थी..। खेती, ईंट भट्टे, घर बनाना, कई तरीकों से भूमि का अतिक्रमण प्रारंभ हुआ। ऐसी जमीनों को सर्वे में ‘छूटी’ हुई जमीन बताया गया। संशोधित सर्वे के वक्त, सरकारी रजिस्टर में दर्ज न होने से भू-माफिया-, अमीन, कर्मचारी और अंचलाधिकारी गठजोड़ कर लाभ उठाने लगे। भूमि का बजाप्ता निबंधन तथा दाखिल खारिज कराकर वैध करार दे दिया गया एवँ सरकारी भूमि की खरीद फरोख्त होने लगी..। जलवायु परिवर्तन से बेहाल धरती माँ, भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के नागपाश में कराह उठीं..।
खबरें फैलीं तो विभाग ने तत्परता से सर्वे करवाया ; समय बीतते प्रक्रिया सुस्त होती गई। परिणाम, शेष भूमि को रैयती बताकर दखल कब्जा किया जाने लगा..।इनपर काबू पाने के लिए कमेटी का गठन कर जिम्मेवारी समाहर्ता को सौंपी गई। वही ढुलमुल नीति – अमीन तथा कर्मचारियों की कमी के बहाने बनाये गये। इन दिनों क्षेत्र के अंचलाधिकारियों से प्रतिवेदन की माँग की गई है, प्राप्त होते ही कार्रवाई आरंभ होगी। देश की दशा छुपी तो नहीं है, मित्र! व्यवस्था में व्याप्त छिद्र ढूँढ ही लेंगे ऐसे लोग,पुनः सब वैसे का वैसा ही..।”
दूल्हे को हल्दी की रस्म के लिए पुकारे जाने पर उनके वार्तालाप को विराम मिला।
“ शादी में आया हूँ, सर्वप्रथम मित्र की वैवाहिक रस्में, मौज-मस्ती, खाना-पीना, फोटोग्राफी…, विवाहोपरांत रिपोर्टिंग ..।” राजीव ने सोचा।
[ ●नीना सिन्हा पटना बिहार से हैं. ●पटना साइंस कॉलेज पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त नीना जी पिछले 2 वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथाएं अनवरत प्रकाशित हो रही है. ●सम्मान: जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा की ओर से ‘सुषमा स्वराज स्मृति सम्मान-2022′ से सम्मानित. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ पत्रिका में नीना जी की पहली रचना. -संपादक ]
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