■अपनी बात : पीयूष कुमार [रामचंद्रपुर छत्तीसगढ़]
[ ●पीयूष कुमार,उच्च शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन में हिंदी के सहायक अध्यापक हैं. ●आकाशवाणी और दूरदर्शन से आलेखों का प्रसारण. ●राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन और प्रकाशन. ●प्रकाशन : ‘सेमरसोत में सांझ'[कविता संग्रह]. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ वेब पोर्टल में पीयूष कुमार की पहली रचना. -संपादक ]
” किसी बात को इसलिए नहीं मानना है कि लोग उसे मानते हैं, या मैने कहा है। यह तब मानो जब वह बात स्वयं के अनुभव, बुद्धि और तर्क की कसौटी पर सत्य सिद्ध हो और सभी के लिए कल्याणकारी हो।”
बुद्ध की यह बात बहुत प्रिय है मुझे पर आज वैज्ञानिक में भी जानने के बजाय बिना तर्क के मानने या कहें अंधश्रद्धा को देखकर चिंता होती है। बात इससे भी आगे यहां तक आ पहुंची है कि विभिन्न रूपों और स्तरों में दबाव बनाकर मनवाने की बात भी देखी जाती है जो हमें मनुष्य होने के अर्थ में बहुत पीछे कर देती है। बुद्ध ने करुणा को प्राथमिकता दी। गंधार शैली की मूर्तियों में बुद्ध की अर्द्धउन्मीलित आंखें जो कहती हैं, वह उनकी करुणा और संदेशों का सार है। आज का समय देखकर लगता है कि करुणामय मन कितना जरूरी है। इसी करुणामय जीवन के अभाव में हमने प्रकृति और उसके अंगों का नाश किया और वह अब हमसे जीवन छीनकर उसकी वसूली कर रही है। यह कोविड काल एक बेहतर उदाहरण है।
अज्ञेय की एक कविता है, ‘साम्राज्ञी का नैवेद्य दान’ जिसमें जापान की तत्कालीन रानी कोमियो प्राचीन राजधानी नारा के बुद्ध मंदिर में अंसमंजस में रीते हाथ ही चली आई थी और कहा था –
महाबुद्ध!
मैं मंदिर में आयी हूँ
रीते हाथ:
फूल मैं ला न सकी।
औरों का संग्रह
तेरे योग्य न होता।
जो मुझे सुनाती
जीवन के विह्वल सुख-क्षण का गीत-
खोलती रूप-जगत् के द्वार जहाँ
तेरी करुणा
बुनती रहती है
भव के सपनों, क्षण के आनंदों के
रह: सूत्र अविराम-
उस भोली मुग्धा को
कँपती
डाली से विलगा न सकी।
जो कली खिलेगी जहाँ, खिली,
जो फूल जहाँ है,
जो भी सुख
जिस भी डाली पर
हुआ पल्लवित, पुलकित,
मैं उसे वहीं पर
अक्षत, अनाघ्रात, अस्पृष्ट, अनाविल,
हे महाबुद्ध!
अर्पित करती हूँ तुझे।
वहीं-वहीं प्रत्येक भरे प्याला जीवन का,
वहीं-वहीं नैवेद्य चढ़ा
अपने सुंदर आनंद-निमिष का,
तेरा हो,
हे विगतागत के, वर्तमान के, पद्मकोश!
हे महाबुद्ध!
पुष्प चढ़ाने किसी खिलती कली को कांपती डाली से अलग न कर वह जहां है, वहीं से अर्पित करने का यह उच्च भाव प्रेरक है, अनुकरणीय है। हृदय का ताग जुड़ा हो तो माध्यम की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह करुणा ही मनुष्य को बचाएगी। बुध्द पूर्णिमा के अवसर पर सबके अन्तस् में करुणा हो, प्रेम हो। समस्त विश्व मे शांति और प्रेम का विस्तार हो, यह कामना है।
■लेखक संपर्क-
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