■धूम्रपान निषेध दिवस पर विशेष दो लघुकथाएं : महेश राजा [महासमुंद छत्तीसगढ़]
■निःशब्द
हिल व्यू पार्क के सामने रेसिडेंशियल ईलाका है। खूब हरा-भरा।जगह जगह पेड़-पौधे।
उसी जगह सामने कुछ दुकानें बनी है।जरूरत का सामान मिलता है।फिर एक मोड और गली।
शाम को स्कूल और आफिस छूटने के समय वहांँ पर कुछ किशोर और युवक अपने -अपने समूह में खडे होकर दिन भर की दास्तान कह रहे थे।भाषा अलग थी।पर,सबके हाथों में जलती हुई सिगरेट थी।तन्मय हो कर फूँक रहे थे।
तभी नजर पास ही एक पेड़ पर लगे बोर्ड पर नजर गयी,लिखा था,केंसर अस्पताल जाने का रास्ता।एरो भी बना हुआ था।
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■साँसों का गणित
सुबह वे बगीचे पहुंच गये।शुद्ध हवा बह रही थी।कुछ देर भ्रमण किया फिर योगा।एक खाली बैंच पर आकर बैठ गये।
अचानक बैचेनी महसूस हुयी।साँस अटकने लगी।
वे जल्दी-जल्दी बाहर आये।सिगरेट निकाल कर सुलगायी।
पहले ही कश के बाद वे सामान्य महसूस करने लगे।
परंतु तुरंत प्यारी बिटिया से किया वादा याद आ गया और उन्होंने सिगरेट के टुकड़े कर जूता तले मसल दिया।
अब वह मन में सुकून महसूस कर रहे थे।
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