■पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता : वंदना गोपाल शर्मा ‘शैली’.
2 years ago
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♀ कविता
चारों ओर से घिरी इमारतें.,
हवा से अब नहीं होती बातें,
कभी-कभी घुटन होती है…
नहीं होती गौरैयां से बातें।
न जाने कहाँ खो गया …
पीपल का वह पेड़ ,
खेलकूद करते थकते न थे…
जिससे होती थी नित्य बातें …।
कभी-कभी चुभन होती है….
पल-पल अब घूटन होती है,
जानी-पहचानी सी जगह अब,
अनजानी सी लगती है ।
ऊँचे-ऊँचे महलों को देख …
बयां भी अब डरने लगी है ,
घूम-घूम अपना ठिकाना …
नए पेड़ों पर
तलाशने लगी है।
नहीं होती अब ,
हवा से बातें
चारों ओर से घिरी इमारतें…।
■कवयित्री संपर्क-
■93028 39704
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