■पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ पेड़ लगावव दू चार
पेड़ लगावव पेड़ लगावव
पेड़ लगावव भाई
मानो कहना हमार जी के अधार, पर्यावरन सुधार
ए गा संगी मानो कहना हमार
पेड़ लगावव दू चार
सांस चलत ले जिनगी हाबय
पवन चलत ले सांसा
पेड़ बिना कहां पवन चलही
जे जिनगी के आसा
सांस बिना कहां जिनगी हमार
ए गा संगी—
धरती के सिंगार हे पेड़
सबो जीव के अहार हे पेड़
सुखी संसार के अधार हे पेड़
पार्यवरन बचाय के उपाय हे पेड़
पेड़ बिना कहां जंगल पहार
ए गा संगी—
गांव गांव मं बाग बगैचा
घर घर आंगन बाड़ी
फुलवारी ह महकत जाही
परवत जंगल झाड़ी
पर्वत बिना कहां रतन भंडार
ए गा संगी—
पेड़ लगावव अउ बचावव
पर्यावरन होही हरा भरा
प्रकृति के सुंदरता बढ़ही
सब जीव ल मिलही ऊर्जा
पेड़ बिना कहां मां के सिंगार
ए गा संगी—-
पेड़ लगही अपार
होही जंगल पहाड़
चलही पवन बयार
मिलही सबला अहार
जंगल बिना कहां सुखी संसार
ए गा संगी—
पर्यावरन के रखव खियाल
इही हे हम सबके परान
एक पेड़ सौ पुत्र समान
एखर सेती एखर राखव मान
पर्यावरन संरक्षन के करव उपाय
ए गा संगी—
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