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■विमोचन : ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज में’.
मुक्तिबोध फिर याद आए
‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ कृति विमोचित
मुक्तिबोध के तीन सुपुत्रों ने किया विमोचन
बौद्धिक वक्तव्यों को सुनने उमडी भीड़
जसम रायपुर का बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम का गरिमामयी आयोजन वृंदावन हाल रायपुर में सम्पन्न हो गया. कार्यक्रम के आरंभ में अजुल्का सक्सेना और वसु गंधर्व ने मुक्तिबोध की कविता की मोहक प्रस्तुति दी.
मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक
अपनी उष्णता से धो चलें अविवेक
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।
जसम रायपुर के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने स्वागत वक्तवय दिया. ज्ञात हो कि 3 मई 2022 को जन संस्कृति मंच रायपुर ईकाई का गठन किया गया था. अल्प समय में ही इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन रायपुर ईकाई ने किया है. आनंद बहादुर ने बताया कि भिलाई ईकाई के सहयोग से इस आयोजन की अनुगूँज पूरे देश में सुनाई दे रही है. उन्होंने मुक्तिबोध पर अपनी बात रखते हुए कहा -“जिसके पास प्रेरणा है वही प्रेरणा को अनुभूत कर सकता है. मुक्तिबोध ने कविता को कविता के लिए नहीं लिखा था.”
मुक्तिबोध के तीन सुपुत्रों रमेश मुक्तिबोध, गिरीश मुक्तिबोध, दिलीप मुक्तिबोध के करकमलों से रामजी राय की कृति ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ का विमोचन सम्पन्न हुआ.
इस अवसर पर रामजी राय ने मुक्तिबोध की कर्मभूमि में किताब के विमोचन होने पर संतुष्टि जाहिर की. रमेश मुक्तिबोध व उपस्थित उनके भाई द्वय के हाथों किताब ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ का विमोचन हुआ, इसका श्रेय रामजी ने मीना राय को दिया. उन्होंने बताया कि यह महत्वपूर्ण सुझाव मीना जी ने दिया था.
बसंत त्रिपाठी ने कहा कि रामजी राय लंबे समय से मुक्तिबोध पर लिखने की प्रक्रिया में थे. ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ इस समय की जरूरी किताब है.”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रणय कृष्ण ने पुस्तक ‘मुक्तिबोध स्वदेश की खोज’ पर सारगर्भित वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि पुस्तक पूर्ण नहीं है, बल्कि यह और लिखे जाने की प्रक्रिया में है.
आलोचक सियाराम शर्मा ने मुक्तिबोध को समय के पहले का कवि निरूपित करते हुए बताया कि किस तरह मुक्तिबोध ने आने वाले संकट को पहचान कर अपनी कविताओं में प्रतिरोध रच सके.
कार्यक्रम में ईश्वर सिंह ‘दोस्त’, प्रेम शंकर सिंह आदि वक्ताओं ने भी विमोचित किताब पर अपनी महत्वपूर्ण बातें रखी. वक्तव्यों से सार निकलकर आया कि रामजी राय की किताब मुक्तिबोध पर लिखी गई अन्य किताबों से भिन्न है. यह किताब रामजी राय ने मुक्तिबोध की दृष्टि लेकर लिखी है, न कि अपनी. इसकेे लिए उन्होंने मुक्तिबोध के सम्पूर्ण साहित्य का लंबे समय से विश्लेषण करते रहे हैं. उन्होंने उन टूल्स की पहचान की, जिससे मुक्तिबोध को सही ढंग से समझना संभव है. इस तरह मुक्तिबोध के साहित्य को सही परिप्रेक्ष्य में जानने यह किताब महत्वपूर्ण बन पड़ी है.
इस किताब के संदर्भ में मुक्तिबोध के एक कविता पर अच्छा प्रश्न उठाया गया कि मेहतर स्थूल रूप में उपस्थित है या प्रतीकात्मक नायक है.
फिर भी, मैं अपनी सार्थकता में खिन्न हूँ
निज से अप्रसन्न हूँ
इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए
पूरी दुनिया साफ करने के लिए मेहतर चाहिए
वह मेहतर मैं हो नहीं पाता
पर, रोज कोई भीतर चिल्लाता है
कि कोई काम बुरा नहीं
बशर्ते कि आदमी खरा हो
फिर भी मैं उस ओर अपने को ढो नहीं पाता।
मोहित जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया, वहीं कार्यक्रम का सफल संचालन भुवाल सिंह ने किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, सुधि पाठक उपस्थित रहे, जिसमें संजय जोशी, अंजन कुमार, इन्द्र कुमार राठौर, राजकुमार सोनी, कमलेश्वर साहू, आलोक कुमार सातपुते, कैलाश बनवासी, विनोद शर्मा, सुरेश वाहने, श्याम लाल साहू, वासुकि प्रसाद उन्मत्त, पूनम साहू, बृजेन्द्र तिवारी, अनिल भतपहरी, अशोक कुमार तिवारी आदि शामिल हैं.
[ ●रपट : सुरेश वाहने ]
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