■छत्तीसगढ़ी कविता : अशोक पटेल ‘आशु’ [ शिवरीनारायण,छत्तीसगढ़ ]
♀ हरियर बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो ग चल धरती ल
सुग्घर बनाबो ग चल धरती ल
नांन्हे-नांन्हे बिरवा लगाबो
जुर-मिल के सब एला सजाबो
जंगल बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो…
रुनझुन झाड़ी-झाड़ी
झुनकुर झाड़ी-झाड़ी
सुग्घर छइहा राहय
झुम-झुम के भवँरा नाचय
बागे बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो…
डाहर के आजु-बाजू
घर-घर के आघु-आघु
परिया घलो झन छुटय
फुलवारी साही लागय
सिंगारी करबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो….
नदिया के तीरे-तीरे
नरवा के खाल्हे-खाल्हे
तरिया के पारे-पारे
रुखराई म सिंगारे
छइहा बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो…
बारी के आरी-आरी
खेती के खारी-खारी
टिकरा के टारी-टारी
कछरी के धारी-धारी
जुड़हा बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो…
गावें के गली-गली
शहर के पारा-पारा
गाँवे के चउक-चौपाळा
देवता के धाम-देवाला
मधुबन बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो….
अंचरा-हरियर लहरावय
हरियर लुगरा कस लागय
धरती मनभावन लागय
धरती ह सुहावन लागय
सुहागिन बनाबो ग चल धरती ल
हरियर बनाबो…
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