■कविता : तारक नाथ चौधुरी [चरोदा,जिला-दुर्ग,छत्तीसगढ़].
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♀ उतरे मेघ धरा पर
ऋतु कोई भी हो
क्षिति पर कोहरा
या
बादलों का डेरा हो-
रूकता नहीं है प्रातःकाल
सूर्यदेव को अर्घ्य देने का क्रम,
वंदन,अभिनंदन और
सूर्य नमस्कार का योग
किन्तु
परिवर्तित ऋतु के साथ
बदलने लगती हैं यही प्रार्थनाएँ
उलाहनाओं में-
हमारी अभिलाषाओं के विपरीत
सूरज को आचरण करता देख।
अपनी श्रेष्ठता,प्रखरता,प्रतिबद्धता पर
धरा के लोगों द्वारा किए जा रहे
निरंतर आक्रमण से पराजित आदित्य
भीतर ही भीतर कहीं
मानव सा संवेदनशील होने लगता है
तभी तो तोड़कर
कुआसे का प्राचीर
निकल आता है अंगीठी लिए
हमारे ठिठुरते बदन को
ताप देने
और झुलसते बदन को ठंडक देने
उतार लाता है
घने काले मेघ धरा पर
■कवि संपर्क-
■83494 98210
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