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■गीत : दिलशाद सैफी
♀ एक और जिंदगी
[ रायपुर, छत्तीसगढ़ ]
मेरे साथी न तलाश वो महबूबा अपनी
के नफ़रतों में खो गयी चाहत अपनी…””
वो दहशत के साए में जिंदगानियाँ
लूटा आबरु,बिलखती मासूम बेटियां…””
कहां है वो आँखो के चमकते तेरे तारे
उन बुजुर्गों के बैशाखियों वाले सहारे…””
झूठ से लबरेज इंसान की जुबा़न है
कौन अपना कौन पराया कौन जाने है…””
ये तेरी शा़नो-शौकत इस जहाँ के कैसे
और ये रेशमी लिबास भी कैसे- कैसे…””
ये इंसानो के खून से सने हुए ख़ंज़र
और ये मंदिर-मस्जिद के टूटते मंजर…””
अपने टूटते घरौंदे देख रोती बूढ़ी नज़र
बनावटी सजावट के लिए कटते शजर…””
ये रोटी के लिए तरसते मासूम नज़र
जब दस्त फैलाए फिरते इधर से उधर…””
ये जद्दोज़हद एक दूजे को मिटाने की
मेरे वतन की मिट्टी को ख़ाक बनाने की…””
अब न करो हमसे मुहब्ब़त की बातें
ये दिल उलझा है,ज़हांँ के ख्यालों में…””
तेरे इश्क़ में दिल को उलझाऊँ कैसे
अब ये मुनासिब नहीं, न कर बात ऐसे…””
गर तू कहे तो एक और जिंदगी
मैं अब तेरे लिए मांग लाऊं उस रब से…””
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