■गीत : डॉ. शिवसेन जैन.
♀ गीत
आज सभी को है आवश्यकता, वाणी
संयम की ।
निज पर निज के अनुशासन की ,
व्रत के पालन की ।।
बारूदों पर दुनिया बैठी
विध्वंसक हथियार लिये ।
वहीं दूसरी ओर विषाणु ने ,
हैं प्रहार किये ।
प्रश्नचिन्ह सब के सन्मुख है सब के
कानन की ।
आज सभी को है आवश्यकता वाणी
संयम की ।।
वाचिक हिंसा पर कब तुम ने
चिन्तन मनन किया ।
सीमाओं की सीमा लांधी
निज का हनन किया ।
रही अधर पर बातें कोरी ,धर धर
पावन की ।
आज सभी को है आवश्यकता वाणी
संयम की ।।
नहीं थमेगा जब तक वाचिक
हिंसा का व्यापार यहाँ ।
तब तक शांति नहीं पाओगे ,
कर श्रंगार यहाँ ।
व्यथा बिदा न लेगी धर से अपने
सावन की ।
आज सभी को है आवश्यकता वाणी
संयम की ।।
अपनों के ही चक्रव्यूह में
अपनी श्वासें है ।
शकुनि मामा की धर धर में
अब भी फांसे है ।
मन में दबी हुई व्यथायें मन के
फागुन की ।
आज सभी को है आवश्यकता वाणी
संयम की ।।
शव्द चेतना की धर धर में
अब तो बातेँ हों ।
धर की मुंडेर पर न अंधियारी
फिर से रातें हों ।
खुशियां लोटें खुशबू लेकर शिव फिर
बचपन की ।
आज सभी को है आवश्यकता वाणी
संयम की ।।
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