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- ■जगन्नाथ रथ यात्रा संसार के सबले बड़े उत्सव मं एक : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
■जगन्नाथ रथ यात्रा संसार के सबले बड़े उत्सव मं एक : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
देश मं जतका महोत्सव मनाय जाथे, जगन्नाथ के रथ यात्रा सबले महत्वपूर्ण हे | ये परंपरागत रथ यात्रा न सिरफ भारत मं बल्कि विदेशी श्रद्धालु मन के घलो आकर्षन के केन्द्र होथे | रथ यात्रा असाढ़ महिना के अंजोरी पाख के दूज तिथि मं मनाय जाथे | ये दिन भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र अउ बहिन सुभद्रा देवी के साथ सुसज्जित तीन रथ मं विराजित होके गुंडिचा मंदिर जा थें | ऊंखर मूर्ति मन ल रथ मं स्थापित किये जाथे | श्री जगन्नाथ जी के रथ ल नंदिघोष, श्री बलभद्र जी के रथ ल तालध्वज अउ श्री सुभद्रा जी के रथ ल देवदलन केहे जाथे | हफ्ता भर से जादा मौसी घर आमोद प्रमोद के बाद ओ मूर्ति मन ल वापस लाके स्थापना करे के साथ महोत्सव समाप्त होथे |
आस्था के केंद्र – पुरी के जगन्नाथ मंदिर भक्त मन के आस्था के केंद्र हे जिहां साल भर श्रद्धालु मन के भीड़ लगे रहिथे | मंदिर के निर्मान 12 वीं शदी मं गंग वंश के प्रतापी राजा अनंगभीम द्वारा होय रिहिसे | स्थापत्य कला अउ शिल्प कला के बेजोड़ उदाहरन हे | मंदिर अपन बेहतरीन नक्काशी अउ भव्यता के लिए जाने जाथे | रथ उत्सव के समय तो एखर छटा बेहद निराला होथे | ये दौरान भक्त मन ल सीधा प्रतिमा तक पहुंचे के मौका मिलथे | भगवान मंदिर से निकल भक्त मन के बीच खुद आथे |
विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा – पुरी मं रथ यात्रा महोत्सव सबले शानदार ढंग ले मनाय जाथे | देश दुनिया के हजारों लाखों श्रद्धालु भक्त ये ल देखे बर पुरी आथें | अतका भीड़ हो जथे के येला संसार के सबले बड़े उत्सव मं गिने जाथे |
ये उत्सव भगवान जगन्नाथ के सम्मान मं मनाय जाथे | जगन्नाथ ल विष्णु के दस अवतार मं ले एक अवतार माने जाथे | दस दिन के उत्सव के तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्री कृष्ण, बलभद्र अउ सुभद्रा के रथ निर्मान से शुरू होथे | महीना भर धार्मिक अनुष्ठान पूजा पाठ किये जाथे |
रथ के बनावट – भव्य विशाल रथ खास लकड़ी के बने होथे | मीनार मं सोन चांदी के परत मढ़े होथे, सुंदर चित्रकारी नक्काशी किये होथे | रथ देखतेच बनथे | जगन्नाथ जी का रथ 832 काष्ठ खण्ड से बनाय जाथे | येमा 16 पहिया होथे | ऊंचाई 137 मीटर यानी 33 हाथ 5 अंगुल होथे | रथ के आवरन रक्तपीत रंग के होथे | बलभद्र जी के रथ 763 काष्ठ खंड ले बने 14 पहिया वाला 32 हाथ 10 अंगुल ऊंचा होथे | रथ के आवरन रक्तनील रंग के होथे | सुभद्रा जी के रथ 413 काष्ठ खंड ले बने 12 पहिया वाला 31 हाथ ऊंचा होथे | रथ के आवरन कृष्णलोहित रंग के होथे |
रथ के रस्सी खींचना बड़ पुन्न माने जाथे – रथ मं घोड़ा जुते दिखाये जाते हैं, लेकिन ये विशाल रथ मन ल मोटा रस्सी के सहारे आदमी खींचते हैं | श्री कृष्ण के अवतार जगन्नाथ के रथ यात्रा के पुन्न सौ यज्ञ के बराबर माने जाथे | मोक्ष भी मिलथे |
हर साल नवा रथ बनाय जाथे – इस मंदिर ले जुड़े एक महत्वपूर्ण सिद्धांत हे – ‘ दुनिया नश्वर हे ‘ | एखरे सेती हर साल नवा रथ बनाय जाथे | दूसर मंदिर मं जिहां एक बार प्रतिमा के प्रतिष्ठापन होय ले हमेशा बर स्थायी हो जथे, उहें जगन्नाथ पुरी के मंदिर मं हर बारा साल मं भगवान के नवा मूर्ति रखे जाथे | नीम विशेष के लकड़ी ले मूर्ति बनाय जाथे | मंदिर के रसम रिवाज पुनर्जनम ल दर्शाथे जउन ह हिंदू परंपरा के आधार स्तंभ हे |
तीनों विग्रह ल रथ मं विराजमान करे के बाद परंपरागत ढंग ले प्रमुख द्वारा ‘ छेरापंहरा ‘ के रसम निभाय जाथे | रथ के सामने सोन बुहारी से बुहारी कर सेवक होय के प्रमान देथें | दोपहर बाद अपार भक्त जन समूह के बीच रथ यात्रा शुरू हो जथे | लाखों के संख्या मं विभिन्न धर्मावलंबी आस्तिक जन इहां आके रथ मं बइठे भगवान ल देख के धन्य हो जथें |
वइसे तो देश के नगर गांव मं रथ यात्रा निकाले जाथे | गजामूंग परसाद बांटे जाथे, फेर ओड़िसा के जगन्नाथ पुरी के रथ यात्रा के अलग महत्व हे, प्रभाव हे |
■डॉ. नीलकंठ देवांगन
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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