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- ■आज़ गुरु पूर्णिमा : ‘गुरु’ पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और प्रकाशमान होते हैं-डॉ. नीलकंठ देवांगन [दुर्ग-छत्तीसगढ़]
■आज़ गुरु पूर्णिमा : ‘गुरु’ पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और प्रकाशमान होते हैं-डॉ. नीलकंठ देवांगन [दुर्ग-छत्तीसगढ़]
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में गुरु का बहुत बड़ा योगदान होता है | अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश देने वाला गुरु कहलाता है | गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है | अज्ञान अंधकार से भटक रहे शिष्यों को सही मार्ग पर लाने वाले व्यक्ति को ही गुरु का पद प्रदान किया गया है |
गुरु पूर्णिमा पर्व – गुरु शिष्य को अपने पुण्य, प्राण और तप यानी दिव्य संपदा का एक अंश देता है | यह अंश पाने की पात्रता, धारण – सामर्थ्य, विकास एवं उपयोग – कला एक सुनिश्चित अनुशासन के अंतर्गत होता है | गुरु का शिष्य वर्ग के प्रति प्रगति के लिए स्नेह लगन जैसा दिव्य भाव हो | गुरु क्रम ऐसा बनाये कि शिष्य वर्ग में उसके प्रति सहज श्रद्धा – सम्मान का भाव जागे |
शिष्य में गुरु के प्रति सहज श्रद्धा विश्वास हो | वह सीखने वाला शिष्य भाव रखे | गुरु जनों का सम्मान और अनुशासन बनाये रखे | शिष्य अपनी कमाई, श्रद्धा – पुरुषार्थ, प्रभाव, संपदा का गुरु को समर्पित करे जिससे गुरु का लोक मंगल अभियान विकसित होता रहे |
गुरु शिष्य के बीच ऐसे ही पवित्र, गूढ़ अंतरंग सूत्रों की स्थापना और उन्हें दृढ़ करने के लिए ‘ गुरु पूर्णिमा पर्व ‘ आता है |
गुरु – गुरु व्यक्ति के रूप में पहचाना जा सकता है पर व्यक्ति की परिधि में सीमित नहीं होता | जो शरीर तक सीमित है, चेतना रूप में स्वयं को विकसित नहीं कर सका, वह अपना अंश शिष्य को दे नहीं सकता | जो इस विद्या का मर्मी नहीं, वह गुरु नहीं |
शिष्य – शिष्य गुरु से निरंतर निर्देश पाता, अनुशासन का पालन करता,मानता अपनाता रहता है | जो शिष्य गुरु को शरीर से परे शक्ति सिद्धांत रूप में पहचान स्वीकार नहीं कर सका , वह शिष्य नहीं |
गुरु का महत्व – शास्त्रों में गुरु की अपरंपार महिमा बताई गई है | गुरु बिना ज्ञान नहीं, गुरु बिना आत्मा संसार सागर से मुक्ति नहीं पा सकती |
भगवान से श्रापित कोई है तो उसे गुरु बचा सकता है लेकिन गुरु से श्रापित व्यक्ति को भगवान भी नहीं बचा पाता | गुरु के आशीर्वाद से मनुष्य अपने जीवन के कठिन से कठिन समय को पार कर लेता है |
गुरु का स्थान सर्वोपरि – गुरु से बढ़कर न शास्त्र है ,न तपस्या, न मंत्र, न स्वर्गादि फल | गुरु ही पिता, माता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर | जन्म दाता पिता और ब्रह्म ज्ञान दाता गुरु से गुरु ही श्रेष्ठ | गुरु ही परमात्मा की पहचान कराता है | गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव हो पाता है | कबीर दास ने गुरु की महिमा में कहा है –
‘ गुरु गोविंद दोऊ खड़े,
काके लागूं पाय |
बलिहारी गुरु आपकी,
गोविंद दियो बताय | |
गुरु शिष्य का सच्चा शुभचिंतक – गुरु का अनुशासन पवित्र श्री फल- नारियल के समान होता है | अपने शिष्य की परीक्षा लेते समय कठोर प्रतीत होता है किंतु उससे बढ़कर हितचिंतक दुनिया में अन्य कोई नहीं |
शिष्य को भी अपने गुरु के प्रति निश्चय के साथ श्रद्धा भक्ति रखनी चाहिये |
गुरु एक नाम नहीं, समस्त जीवन की चेतना हैं , स्पंदन हैं, दिव्यता हैं | जहां अन्य देवता मनुष्य की कल्पना के प्रतीक हैं, वहीं गुरु साक्षात् स्पंदन युक्त ,चेतना युक्त, दिव्यतम हैं | गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उज्ज्वल और प्रकाशमान होते हैं | उनका तेज ईश्वर के तेज से कम नहीं होता | इसलिये यह दिन गुरु की पूजा का विशेष दिन है |
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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