●कविता – सुनीता अग्रवाल.
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मेहंदी भी तु, सावन भी तु
-सुनीता अग्रवाल
【 रांची, झारखंड 】
मेरा श्रिंगार मेरा साजन,
मेरा सावन मेरा साजन।
तुमसे ही बहारें मेरी,
तुम ही मेरे गुलशन॥
हाथों की मेहंदी में तु है,
आँखों के काजल में तु है।
गजरे में ख़ुशबू तुझसे है,
सावन की हरियाली में तु है॥
होंठों की लाली तूझ से है,
मेरा सुकुन भी तुझसे से है।
तुझसे आती बहारें जीवन में,
चूड़ियों की खन-खन तुझसे है॥
खिल जाती में तेरे होने से,
रंग जाती में तेरे होने से।
सावन ही सावन है जीवन में,
बस एक तेरा मेरे होने से॥
●कवयित्री संपर्क-
●76744 57433
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