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- ♀ नई संस्कृति का निर्माण : डॉ. अंजना श्रीवास्तव.
♀ नई संस्कृति का निर्माण : डॉ. अंजना श्रीवास्तव.
अकसर मैं सोचती हूँ
किन किन बन्धनों से बंध गयी मैं
प्रकृति के प्रांगण में स्वच्छन्द विचरण करती मैं
तितली सी उड़ती आकाश में उड़ने की सोचती मैं
प्रत्यक्ष से स्व-विकास का आत्मोन्नति पर बढ़ती मैं
प्रकृति की गोद में कल्पनाओं के पंख फैलाती मैं
अपने सिर्फ अपने सपनों के जाल बुनती मुस्कराती मैं
मगर आज प्रकृति की गोद कहाँ गयी, ढूंढ रही मैं
इक्कीसवी शताब्दी की रंगीन दुनिया में खड़ी सोच रही मैं
इधर-उधर गहरे अंधेरों में भटक रही मैं
धूप की चाह में आलीशान घरों को देख रही मैं
फैक्ट्रियों का धुंआ कोलाहल, सड़कों का पी पो का शोर
कर्णभेदी प्रदूषण मस्तिष्क पर आक्रमण को झेल रही मैं
जिन्दगी की रफ्तार धीरे-धीरे पंगु कमजोर बनती जा रही
कृत्रिम संसार मुरझाती प्रकृति को समेटती विनाश से बचती मैं
अचानक एक दिन कलयुगी कोरोना उधम मचाता आ गया
कोरोना राक्षस से खुद को कैसे बचाऊं, सबको कैसे बचाऊं
भयावह स्थिति परिस्थिति, कोरोना से हांफ रहे कारोबार
भूख प्यास से तड़पती सृष्टि कैसे देखू मैं
जग तो जीतना है, कभी हताश नहीं होना है
पक्का विश्वास है जिन्दगी सही पटरी पर अवश्य आयेगी
हर दिन लॉकडाउन होगा, नयी दुनिया नये संस्कार बनायेंगे
मास्क सेनीटाइजर से नयी परम्परा बनाकर नया गुलशन सजायेंगे
चलो संकल्प करो नयी संस्कृति का निर्माण करेंगे, निर्माण करेंगे।
●संपर्क-
●99819 23250
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