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- ▪️ धार्मिक स्थल : मैं देवप्रयाग हूँ – •अंशुमन राय.
▪️ धार्मिक स्थल : मैं देवप्रयाग हूँ – •अंशुमन राय.
मैं देवप्रयाग हूँ. वैसे तो मैं आधिकारिक रूप से उतराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में मात्र हूँ. परंतु धार्मिक दृष्टि से मेरा स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है. मैं पंच प्रयागों में से एक हूँ और उनमें सबसे महत्वपूर्ण भी, क्योंकि मेरे स्थल पर ही ‘ अलकनंदा ‘ एवं ‘ भागिरथी ‘ नदियों के उपरांत ही इस संयुक्त नदी का नामकरण ‘ गंगा ‘ के रूप में होता है और इसके पश्चात ही उसका सफर ‘ गंगा ‘ के रूप में आरंभ होता है और पहाडो से बहती हुई वह ऋषिकेश में दाखिल होती है, जो यहाँ से लगभग 70कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है.
मैं वही देवप्रयाग हूँ, जहाँ भगवान राम को समर्पित रघुनाथ मंदिर है. यह अत्यंत प्राचीन तो है ही एवं मान्यता अनुसार आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था. इसी मंदिर के प्रागंण में पीछे पत्थरों पर एक दुर्लभ लिपि उद्धृत है जो अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ नहीं जा सकी है.
मैं वही देवप्रयाग हूँ, जहाँ स्वयं प्रभु श्रीराम पधारे थे एवं मान्यता अनुसार रावण वध के उपरांत ब्रह्महत्या की अनुताप की वजह से उन्होंने न सिर्फ यहाँ पर तपस्या किया था बल्कि अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान भी किया था.
मैं वही देवप्रयाग हूँ, जो अत्यंत प्राचीन भव्य प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण तो है परंतु मुख्य चारधाम सर्किट में होने की वजह से एवं मुख्य ऋषिकेश – बद्रीनाथ मार्ग में होने की वजह से पर्यटकों का अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है. जो कहीं न कहीं मेरी मौलिकता, और प्राकृतिक सौंदर्यता संरचना को प्रभावित कर रहा है.
देवप्रयाग कभी महर्षि देवशर्मा जी की तपस्थली हुआ करती थी, वह आज बेतरतीब विकास के बोझ तले दबा जा रहा है. समय रहते वैज्ञानिक एवं ठोस प्रयास नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं, जब माँ गंगा तो रहेगी परंतु मेरा यानि ‘ देवप्रयाग ‘ का वह सौंदर्य, वह आकर्षण शायद नष्ट हो जायेगा.
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