▪️ दीपावली आगमन पर विशेष : सुनीता अग्रवाल ‘ पिंकी ‘ [राँची, झारखंड]
▪️ बचपन वाली दिवाली
बचपन वाली दिवाली
याद आती है।
महीनों पहले ही
शुरू हो जाती थी
घर की साफ़-सफ़ाई।
बारी बारी से हर एक
कमरे की,आँगन की
चबूतरे की,छज्जे की
छत की,रसोई_घर की
होती थी दिवाली की
जम कर सफ़ाई।
स्कूल से आते ही
पटक स्कूल का थैला
टूट पड़ते थे
देखने,निहारने
कोने कोने से
निकले हुए
समानो को।
नए कपड़े ख़रीदने जाते
घर के सारे भाई-बहन
चाचा ताऊ के साथ।
दर्ज़ी की दुकान के
चक्कर भी रोज़ लगाते
ख़ुश हो कर,
घूम घूम कर।
पटाखे ख़रीदने की
जिद्द भी कभी पापा
तो कभी चाचा तो
कभी ताऊ पूरा
ख़ुशी ख़ुशी कर
दिया करते थे।
दुकान जाते वक्त
मिट्टी के खिलौने
भी ख़ूब ले आते थे।
दो तीन मंज़िला
घरौंदे भी घर के
आँगन में बना कर
दीपों से जगमगा
दिया करते थे।
दिवाली की रामरमी
करने जाती
माँ,चाची ताई तो
संग जाने की जिद्द भी
ख़ूब किया करते थे।
कितने ही हर्ष,
उल्लास से
मना लो बड़े होने पर
नए जमाने की
नई दिवाली
नही भूलता मन वो
बालमन की यादें
और नहीं भूलता
वो बचपन
वाली दीपावली….
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