कविता आसपास : डॉ. नीलकंठ देवांगन
🌸 तेरा बसंत – मेरा दृष्टिकोण
मधु चुम्बन पाके भंवरों का
सिहर जाती हैं ज्यों कलियां
यौवन के दहलीज पर पहुंच
पुलकित होती जीवन गलियां
मधुनीर निर्झर पर पराग पा
मदमस्त हो जाते ज्यों भ्रमर
बसंत की सुषमा से अनुराग पी
लाली लुटाता पलाश आठों पहर
मधुमास के आगमन से दिशाएं
हो जाती ज्यों प्रणय सिक्त
रसिक मादकता से लद जातीं
पत्र पुष्प तरु ज्यों अतिरिक्त
शरीर की गंधाकुलता
उन्माद भर देता ज्यों चहुं ओर
दिग दिगंत में छा जाता
प्रेमाकर्षणा का अजीब डोर
सुनकर तेरे गीत बसंत का
रीत गया मन मेरा
मन बासंती तो हुआ ही
सिहर गया सारा बदन
रूप रस गंध की मोहक छटा का
कितना सुंदर वर्णन था
आनंद उल्लास जोश मस्ती का
कितना सुंदर आलम था
मंजरी से लदे आम्र वृक्षों से
उड़ रही थी भीनी महक
मादक वातावरण में मधुर
गूंज रही थी कोयल की कुहुक
सुनकर तेरे गीत बसंत का
हर्षित हो गया तन मन
मन बासंती तो हुआ ही
सिहर उठा सारा बदन
मधुर गुंजार करते अलमस्त भौंरे
मधुपान में मदमस्त थे
नव उत्साह स्फुर्ति से सभी जीव
रंग राग में रस मग्न थे
रंग बिरंगे फूलों पर तितलियां
रस पान में तल्लीन थीं
नई दुल्हनियां अपने प्रियतमों को
प्यार से रिझाने रस लीन थीं
पढ़कर तेरे गीत बसंत का
पुलकित हो गया मन
मन बासंती तो हुआ ही
सिहर गया सारा बदन
रतनार नयनों से मदिरा पी
तृप्त हो जातीं ज्यों प्यासी आंखें
आलिंगन रत होने उत्सुक दिखतीं
यौवन भार से ज्यों बोझिल शाखें
तन मन को सुरभित करता
बरस रहा था मकरंद
तरुणाई पाकर होने लगा था
अधरों से अधरों के अनुबंध
सुनकर तेरे गीत बसंत का
तृप्त हो गया मन
मन बासंती तो हुआ ही
सिहर गया सारा बदन
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🌸 हे गणतंत्र महान
हे गणतंत्र महान
अभिनंदन है तेरा
तू लोकतंत्र की जान
शत शत वंदन है तेरा
पहले थे हम गुलाम
अब नहीं रहे
पहले थे हम लाचार
अब नहीं रहे
हम तुझसे ही बलवान
देश है महान अपना
संस्कृति भी महान
उन्नत ज्ञान विज्ञान
जानत सकल जहान
तेरा ही गौरव गान
सोने की है चिड़िया
धन धान्य का आगार
हीरे मोती से भरा
अतुल खनिज भंडार
तेरी ही कीर्ति महान
ऐसी शक्ति हमें दो
देश हित में आयें काम
अमर रहे तू सदा
भले हमारी जाये जान
देश की तू पहचान
तू धारक संविधान
अभिनंदन है तेरा
जग में तेरी शान
शत शत वंदन है तेरा
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[ डॉ.नीलकंठ देवांगन शिवधाम कोडिया, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़ से हैं •संपर्क : 84355 52828 ]
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