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कविता आसपास : महेश राठौर ‘ मलय ‘
2 years ago
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🌸 वासंती संदूक [दोहे]
मौसम मादक हो चला,
वात सुखद अत्यंत।
कण-कण प्रेम तलाशता,
आया सरस वसंत।।
कुसुमाकर-परिरम्भ में,
सिमटी सरसों पीत।
मंजरियाँ गाने लगीं,
वासंती नवगीत।।
सुंदर नीली झील में,
लहरें उठतीं लोल।
हंसयुगल मन-मोहते,
कर मंजुल किल्लोल।।
आक, ढाक, अलसी खिले,
कोयल की मधु कूक।
खोल दिया कंदर्प ने,
वासंती संदूक।।
पुष्पित बोगनवेलिया,
पाटलरंगी फूल।
मन-मधुकर संभालिए,
कर बैठे मत भूल।।
झर-झर नाद उचारते,
निर्झर रजत-शरीर।
सकल दिशाएँ बेधते,
कामदेव के तीर।।
गद्गद गेंदे बाग में,
लुटा रहे आह्लाद।
उन्हें लुभाने घूमते,
चंचरीक उस्ताद।।
वसंत ऋतु है ओजमय,
राग, रंग का पर्व।
वृंत्त-वृंत्त पर नाचता,
मानो बन गंधर्व।।
•कवि संपर्क –
•81094 70546
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chhattisgarhaaspaas
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