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महाशिवरात्रि विशेष : महाशिवरात्रि महात्म्य को जानें : जगाएं शिवत्व को – डॉ. नीलकंठ देवांगन
भगवान शिव मनुष्य के सभी कष्टों एवं पापों को हरने वाले हैं | सांसारिक दुखों से शिव ही मुक्ति दिला सकते हैं |इसीलिए प्रत्येक मास के अंतिम दिन शिव की पूजा करके जाने अनजाने किये हुए पाप कर्म के लिए क्षमा मांगने और आने वाले मास में शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रावधान है | महाशिवरात्रि वर्ष के अंत में आती है | अतः इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है | सत्य ही शिव है | शिव ही सुंदर है | तभी तो भगवान आशुतोष को सत्यम् शिवम् सुंदरम् कहा जाता है | ये जल्दी प्रसन्न होने वाले हैं | भोलेनाथ को प्रसन्न करने का ही पर्व है- महाशिवरात्रि जिसे फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है | सनातन धर्म के सभी प्रेमी इस त्योहार को मनाते हैं | इस दिन पूरे वर्ष में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना की जाती है और आने वाले वर्ष में उन्नति और सद्गुण के विकास के लिए प्रार्थना की जाती है |
क्यों कहते हैं शिवरात्रि – रात्रि शब्द अज्ञान अंधकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है | परमात्मा ही ज्ञान सागर है जो मानव मात्र को सत्य ज्ञान द्वारा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं | जब समाज में 5 विकार जिन्हें माया कहा जाता है, सब जगह व्याप्त हो जाता है, तब उससे मुक्ति के लिए भगवान शिव का अवतरण होता है | शुद्धि एवं मुक्ति के लिए रात्रि में की गई साधना अधिक फलदायी होती है | अतः इस दिन रात्रि जागरण कर उनकी साधना और पूजा करने का बहुत महत्व है | त्रयोदशी और चतुर्दशी का व्रत पूजन काफी फलदायी है |
परमात्मा शिव निराकार ज्योति स्वरूप हैं और इन्हीं का प्रतीक शिवलिंग है | शिव भक्त इस दिन जप तप व्रत रखते हैं और भगवान के शिवलिंग रूप के दर्शन पूजन करते हैं | इस पवित्र दिन देश के हर हिस्से में शिवालयों में बेलपत्र, धतूरा, दूध, दही, शक्कर आदि से शिवजी का अभिषेक किया जाता है | शिवजी को सच्चे मन से याद कर लिया जाय तो वे प्रसन्न हो जाते हैं | वे जलाभिषेक, बेल पत्र चढ़ाने, जागरण से ही भक्त के हो जाते हैं | उन्हें आशीर्वाद वरदान दे देते हैं | हम उन्हें दोष दुर्गुण रूपी अक धतूरा अर्पित करें |
शिव महायोगी हैं तो सांसारिक भी हैं ,ध्यानस्थ हैं तो त्रिकालदर्शी भी हैं, भोले भगवान हैं तो भक्त भी हैं | शिव कल्याणकारी हैं | शिव का अर्थ कल्याण है | पापों से परेशान होकर प्राणी जहां आराम पाता है, उसी आश्रय को शिव कहा जाता है | शिव को कई रूपों और नामों से जाना और पूजा जाता है | वे ‘रुद्र’ कहलाते हैं क्योंकि दुखों को तुरंत खत्म कर देते हैं | उन्हें ‘हर’ कहते हैं क्योंकि वे सबके दुखों को हरने वाले हैं | वे ‘शंकर’ हैं क्योंकि ‘शं’ अर्थात् कल्याण करने वाले हैं |
वे भूत , वर्तमान और भविष्य तीनों कालों के ज्ञाता हैं इसलिए ‘त्रिनेत्र’ कहलाते हैं | उन्हें ‘वृषारूढ़’ अर्थात् बैल पर आरूढ़ कहा जाता है | यह सांकेतिक शब्द है | ‘वृष’ का अर्थ है- धर्म | वे ‘विषपायी’ कहलाते हैं क्योंकि सबके पापों (विषों) को पी जाते हैं | वे विष का वरण कर ‘नीलकंठ’ कहलाते हैं |
वे संहारक भी हैं और सर्जक भी हैं | चंद्रमा के रूप में समय शिव के सिर पर विद्यमान रहता है और सृजन के रूप में हाथ में होता है डमरू | शिव हमारी आत्मा के अविनाशी पिता हैं इसलिए जितना अपनापन हमें निराकार शिव ज्योतिर्पिंड के सम्मुख मिलता है, उतना किसी देवता की मूर्ति के सम्मुख नहीं मिलता | जब हम तन मन से प्रभु पिता परमात्मा के प्रतीक चिन्ह ‘शिवज्योतिर्लिगम्’ के सामने जाते हैं, हमारा मन अंदर ही अंदर एक दिव्य अनुभूति में खो जाता है |
जगाएं शिवत्व को – आंतरिक आनंद की प्राप्ति के लिए शिवलिंग को माता पिता के स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिए| पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं |शिव भक्त जितना उसे याद करता है या पंचाक्षरी मंत्र का जाप करता है, उतना ही उसके अंतः करण की शुद्धि होती है एवं वह अपने अंतःकरण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान के रूप में विराजमान शिव के समीप होता जाता है | उसके रोग दुख दरिद्रता ,शत्रुजनित पीड़ा एवं कष्टों का अंत हो जाता है | उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है | शिवत्व जागृत हो जाता है |
मान्यता है कि महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर ही भोलेनाथ और पार्वती विवाह के पावन सूत्र में बंधे थे | कहते हैं कि इसी दिन समुद्र मंथन से निकले कालकूट नाम के विष को अपने कंठ में रख लिया था |
सावयव पूजा एवं लिंग पूजा के भेद को जानें | महत्व को जानें | महाशिवरात्रि पर शिव के यथार्थ स्वरूप को जानें | उन्हें कैसे अनुभव कर सकते हैं, यह जानें |
•डॉ.नीलकंठ देवांगन
•संपर्क –
•84355 52828
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